कश्मीर के पुलवामा में चूक के कारण फिदायीन हमला

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पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का चेहरा एक बार पुन: बेनकाब हुआ है। दरअसल गुरुवार को लगभग 3.30 बजे नेशनल हाईवे से सीआरपीएफ के 78 गाड़ियों के काफिले में जम्मू से श्रीनगर जाने के क्रम में पुलवामा में एक फिदायीन हमले के दौरान 42 जवान शहीद और अन्य जवान घायल हुए हैं। इस हमले की जिम्मेदारी जैश ए मुहम्मद आतंकी संगठन ने ली है। इस आतंकी हमलें की अमेरिका, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन आदि देशों ने निंदा की है। यहां देखा जाए तो आतंकवादियों ने आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने हेतु पहली बार भारत के सरजमीं पर इस प्रकार का फिदायीन हमला किया है। इस प्रकार की शैली को इराक, इरान और अफगानिस्तान में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते हेतु देखा गया है। ज्ञत हो कि पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित आतंकी आए दिन भारत पाकिस्तान सीमा पर तनाव पूर्ण माहौल बनाए रहते हैं और गोलीबारी करते हंै जिसमें भारतीय नागरिकों की मृत्यु और सैनिकों की शहादत होती है।

लेकिन जिस प्रकार का फिदायीन हमला पुलवामा में हुआ है। उसमें पहली बार एक कश्मीरी युवक का ही मानव बम के रुप में इस्तेमाल किया गया है। जिसके कारण व्यापक क्षति हुई है। 18 सितंबर 2016 के उड़ी हमलें के पश्चात एक बड़ा हमला हुआ है। जिसमें 18 जवान शहीद हुए थे। मालूम हो कि आईबी के आतंकी हमले के अलर्ट के पश्चात भी इस हमले को नहीं रोका जा सका है। जो दुर्भाग्य पूर्ण है। इससे कई गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। पहला जब आईबी ने अलर्ट किया था कि सीआरपीएफ पर कोई बड़ा हमला हो सकता है तो धरातल पर सुरक्षा बलों ने इसे क्रियान्विंत क्यों नहीं किया? दूसरा क्या आईबी एलर्ट को गंभीरतापूर्वक नहीं लिया गया? तीसरा उस इलाके का मुआयना किया गया या नहीं। दरअसल काफिला के आवागमन के पूर्व रोड ओपेनिंग पार्टी रुट को चेक करने के पश्चात रिपोर्ट देता है।

रिपोर्ट के आधार पर ही काफिले का आवागमन होता है। यहाँ देखा जाए तो 78 गाड़ियों में 2547 लोग सवार थे तो ऐसे में रोड ओपनिंग पार्टी निश्चित ही रुट को चेक किया होगा। बावजूद ऐसी दुर्घटना सुरक्षा में चूक को इंगित करती है। चौथा इतने बड़े काफिले के गुजरने पर चप्पे चप्पे पर सैनिक बलों की तैनाती होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा होता हुआ प्रतीत नहीं हुआ है। पांचवा आतंकी ने कार में 200 किलोग्राम विस्फोटक रखा था तो क्या कही भी उस कार की जांच नहीं की गई? यहाँ देखा जाए तो निश्चित ही आईबी अलर्ट के पश्चात सुरक्षा जांच होनी चाहिए थी और यह चूक का ही मामला है। प्रश्न उठता है कि राष्ट्रीय स्तर पर वे कौन सी परिस्थितियां हंै जिसके कारण आतंकी कश्मीर में अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने में लगे हुए हैं?

पहला कश्मीर के अलगाववादी संगठनों जिसे पाकिस्तान की शह प्राप्त है के द्वारा कश्मीर के माध्यम से भारत को लगातार अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं। दुखद है कि वे लोग कुछ कश्मीरी नौजवानों को आतंक के रास्ते पर चलने हेतु ब्रेनवाश करने में सफल हुए हैं। यहाँ देखा जाए तो कश्मीरी नौजवानों के भटकाव का सिलसिला तो जारी है। इसके उदाहरण के रुप में देख सकते हंै कि पिछले वर्ष कश्मीर मेंं काफी नौजवान अपनी जान की परवाह किए बगैर पत्थरबाजों के साथ खड़े दिखाई दिए। कश्मीर के अंदर कुछ लोगों की राजनीतिक स्वार्थी नीतियों के कारण समस्याओं के समाधान के बजाय हालात खराब ही हुए हैं। जो भारत की सुरक्षा के समक्ष गंभीर चुनौती है। दूसरा विश्व में आतंकवाद कहीं भी स्थानीय समर्थन के बगैर नहीं चल सकता है। चाहे किसी भी कारण से समर्थन दिया गया हो।

उसमें भय, अज्ञानता या फिर स्वार्थ कोई कारण हो सकता है। पिछले वर्ष आतंकियों ने सेना में तैनात औरंगजेब नामक सैनिक का अपहरण कर उनकी हत्या की। इस प्रकार कश्मीर के समाज में भय को बढ़ाने का प्रयास किया। इसी प्रकार कुछ ऐसे लोगों की भी हत्याएं की जो सरकारी तंत्र का हिस्सा थे। मुखबिरी के शक में हुजैफ अशरफ की हत्या, तो पुलवामा के निकलोरा इलाके में आतंकियों ने एक छात्र की हत्या की। ऐसी घटनाओं से निश्चित ही रूह कांप जाती है। तीन दिन पहले समाज में आतंक का डर व्याप्त करने हेतु एक महिला को आतंकियों ने गोली मार दी। कहने का अर्थ है कि कश्मीर में आतंकी स्थानीय निवासियों के मन में खौफ पैदा करके भी कश्मीर के युवाओं को आतंक के मार्ग पर ढकेल रहे है। ताकि अपनी आतंकी गतिविधियों को सफलतापूर्वक संचालित कर सके।

आवश्यकता है कि सरकार कश्मीर की नीतियों को लेकर स्पष्ट खाका खींचे और राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर देश की एकता, अखंडता , शांति, विकास को बरकरार रखने संबंधित कदम उठाए ताकि लोगों में सरकारों और सरकार की नीतियों के प्रति विश्वास की भावना जागृत की जा सके, लोगों में आतंकियों के भय को समाप्त किया जा सके तथा कश्मीरी नौजवानों को भटकाव के रास्ते पर जाने से रोका जा सके। तीसरा जिस प्रकार दक्षिणी कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा आतंकी कार्यवाईयों को अंजाम दिया गया जैसे अमरनाथ बस पर हमला, सेना के जवानों पर हमला आदि। सेना ने कश्मीर को आतंकवाद से मुक्त करने हेतु आपरेशन आॅल आउट चला रखा है जिसके कारण एक साल से प्रतिदिन लगभग चार से पांच आतंकी मारे जा रहे हंंै। अब तक आपरेशन आॅल आउट के कारण पांच सौ से ऊपर आतंकी मारे जा चुके हैं।

इस प्रकार सेना आतंकियों की कमर तोड़ने में लगी हुई है। मसूद मौलाना अजहर वही व्यक्ति है जिसे भारतीय विमान आईसी 814 के अपहरण के पश्चात 176 यात्रियों की जान बचाने हेतु रिहा किया गया। 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हमले का जिम्मेदार, 2 जून 2016 को पठानकोट पर हमलें का जिम्मेदार, 16 सितंबर 2016 को उड़ी हमले का भी जिम्मेदार है और 14 फरवरी 2019 को पुलवामा आतंकी हमले का जिम्मेदार तो है ही। दरअसल इस हमले के माध्यम से जैश ए मोहम्मद संगठन ने कश्मीर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो भारत ने पाकिस्तान को लगातार कई मंचों से आतंकवाद के मामले पर घेरा है। जो पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन चुका है। चाहे वो संयुक्त राष्ट्र का मंच हो या आसियान या शंघाई सहयोग संगठन हो या ब्रिक्स संगठन या अफ्रीकी संघ। ऐसे में संपूर्ण विश्व भली भांति परिचित है कि पाकिस्तान आतंकियों की शरणस्थली है।अमेरिका ने तो पाकिस्तान की आर्थिक सहायता इसलिए रोक रखी है क्योंकि वह हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों के खिलाफ आतंकी कार्रवाई करने में नाकामयाब रहा।

यूरोपीय यूनियन भी पाकिस्तान को चेतावनी दे चुका है। लेकिन वर्तमान में आवश्यकता यह है कि विश्व स्तर पर आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा दी जाए क्योंकि सभी राष्ट्र अपने हिसाब से आतंकवाद की परिभाषा गढ़ते है जिसके कारण संपूर्ण विश्व में आतंकवाद पर रोक लगाना मुश्किल होता है। पाकिस्तान की पहचान वर्तमान में एक आतंकिस्तान राष्ट्र के रूप में हो चुका है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की चपेट में पड़ोसी मुल्क जैसे भारत, ईरान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश आदि तो हैं ही, साथ में यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका भी आतंकवाद के प्रभाव से अछूते नहीं है। ऐसे में लगभग सभी राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय मंचों से पाकिस्तान की आलोचना करते है लेकिन पाकिस्तान के विरुद्ध ठोस कदम उठाने की भी आवश्यकता है। पेरिस स्थित अंतर सरकारी संस्था फाइनैंशल ऐक्सन टास्क फोर्स ने 2018 में आतंक की फंडिंग रोक पाने में विफल रहने पर पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट यानी ब्लैक लिस्ट में डाल दिया है। ग्रे लिस्ट में डालने का आशय है कि इसको अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज मिलने में कठिनाई होना।

जिसका प्रभाव निश्चित ही अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। साथ ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है लेकिन चीन जो पाकिस्तान का सदाबहार मित्र है । वह एक शातिर राष्ट्र है । एक तरफ चीन ने पाकिस्तान में अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना वन वेल्ट वन रोड के तहत चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कारिडोर के तहत करोड़ों डॉलर निवेश कर पाकिस्तान को अपने कर्ज के जाल में फंसा चुका है। तो दूसरी ओर पाकिस्तान समर्थित आतंकी मौलाना मसूद को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित करने में अडंगा लगाता है। उससे चीन को दो लाभ है एक पाकिस्तान के प्रति दोस्ती को बनाए रखने का संकेत देता है और दूसरा भारत को वर्तमान के वैश्विककरण के दौर में आतंक में मामले में उलझाकर रखना चाहता है ताकि भारत को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की राह में रोड़ा अटका सके। ज्ञात हो कि भारत और चीन एशिया की दो प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्थाएं है। चीन नहीं चाहता है कि भारत एक आर्थिक महाशक्ति बने

उधरजब अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क पर कार्यवाही न करने के क्रम में आर्थिक मदद पर रोक लगाई तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की स्थिति लगातार खराब हुई है। ऐसे में यहाँ बेरोजगारी, अशिक्षा, सामाजिक उथलपुथल के कारण अराजकता होना तय है। अपने ऐसे अंदरूनी मामलों से निपटने के लिए पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध समय के साथ प्राक्सी वार में वृद्धि होगी। ऐसे में भारत सरकार और राज्य सरकारों को जम्मू कश्मीर के मसले के साथ साथ संपूर्ण भारत की सुरक्षा पर भी सतर्क रहने की आवश्यकता है।

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