हमारा संविधान देश को जन कल्याणकारी राज्य घोषित करता है। बिजली, रेल, हवाई यात्र, पेट्रोलियम, गैस, कोयला, संचार, फर्टिलाइजर, सीमेंट, एल्युमिनियम, भंडारण, ट्रांस्पोरटेशन, इलेक्ट्रानिक्स, हैवी विद्युत उपकरण, हमारे जीवन के लगभग हर क्षेत्र में आजादी के बाद से पब्लिक सेक्टर ने हमारे देश में ही नहीं, पड़ोसी देशों में भी एक महत्वपूर्ण संरचना कर दिखाई है। बिजली यदि पब्लिक सेक्टर में न होती तो गांव-गांव रोशनी पहुंचना नामुमकिन था। हर व्यक्ति के बैंक खाते की जो गर्वोक्ति देश दुनियां भर में करता है, यदि बैंक केवल निजी क्षेत्र में होते तो यह कार्य असंभव था। वर्तमान युग वैश्विक सोच व ग्लोबल बाजार का हो चला है। सारी दुनिया में विश्व बैंक तथा समानांतर वैश्विक वित्तीय संस्थाएं अधिकांश देशों की सरकारों पर अपनी सोच का दबाव बना रही हैं। स्पष्टत: इन अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के निर्देशानुसार सरकारें नियम बनाती दिखती हैं।
पाकिस्तान जैसे छोटे मोटे देशों की आर्थिक बदहाली के कारणों में उनकी स्वयं की कोई वित्तीय सुदृृढ़ता न होना व पूरी तरह उधार की इकानामी होना है जिसके चलते वे इन वैश्विक संस्थानों के सम्मुख विवश हैं किंतु भारत एक स्वनिर्मित सुदृढ़ आर्थिक व्यवस्था का मालिक रहा है। हमारे गांव अपनी खेती व ग्रामोद्योग के कारण आत्मनिर्भर बने रहे हैं। नकारात्मकता में सकारात्मकता ढूंढें तो शायद विकास की शहरी चकाचौंध न पहुंच पाने के चलते भी अप्रत्यक्षत: गांव अपनी गरीबी में भी आत्मनिर्भर रहे हैं। इस दृृष्टि से किसानों को निजी हाथों में सौंपने से बचने की जरूरत है। हमारे शहरों की इकॉनामी की आत्मनिर्भरता में बहुत बड़ा हाथ पब्लिक सेक्टर नवरत्न सरकारी कंपनियों का है।
इसी तरह यदि शहरी इकॉनामी में नकारात्मकता में सकारात्मकता ढूंढी जाए तो शायद समानांतर ब्लैक मनी की कैश इकॉनामी भी शहरी आर्थिक आत्मनिर्भरता के कारणों में एक हो सकती है। पब्लिक सेक्टर देश के नैसर्गिक संसाधनों पर जनता के अधिकार के संरक्षक रहे हैं जबकि पब्लिक सेक्टर की जगह निजी क्षेत्र का प्रवेश देश के बने बनाए संसाधनों को कौड़ियों में व्यक्तिगत संपत्ति में बदल देंगे। प्रिवीपर्स बंद करना, बैंको का राष्ट्रीयकरण जैसे कदमों का यू टर्न स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान की मूल लोकहितकारी भावना के विपरीत परिलक्षित होता है।
हमें वैश्विक परिस्थितियों में अपनी अलग जनहितकारी साख बनाए रखनी चाहिए, तभी हम सचमुच आत्मनिर्भर होकर स्वयं को विश्वगुरू प्रमाणित कर सकेंगे। क्या उपभोक्ता अधिकार निजी क्षेत्र में सुरक्षित रहेंगे? पब्लिक सेक्टर की जगह लाया जा रहा निजी क्षेत्र महिला आरक्षण, विकलांग आरक्षण, अनुसूचित जन जातियों का वर्षों से बार बार बढ़ाया जाता आरक्षण तुरंत बंद कर देगा। निजी क्षेत्र में कर्मचारी हितों, पेंशन का संरक्षण कौन करेगा? ऐसे सवालों के उत्तर हर भारतीय को स्वयं ही सोचने हैं क्योंकि सरकारें राजनैतिक हितों के चलते दूरदर्शिता से कुछ नहीं सोच रही हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के सुधार और सदृृढ़ीकरण की तरकीब ढूंढना जरूरी है न कि उसका निजीकरण कर उसे समाप्त करना।
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