मेरी राय यह है कि विधानसभा का चुनाव है; अत: विधायी कार्य संबंधी ‘दिल्ली नीति घोषणापत्र’ बने। यह पूरी दिल्ली के स्तर पर बने। 70 विधानसभाओं की विकास संबंधी इलाकाई जरूरतें और परिस्थितियां विविध हैं। जाहिर है कि प्रत्येक विधानसभा का विकास संबंधी रोड मैप भी अलग-अलग ही होना चाहिए। अत: उम्मीदवारों को चाहिए कि वे मोहल्ला निवासी समितियों का आह्वान करें। अपने प्रचार का पहला सप्ताह विधानसभा स्तरीय घोषणापत्र बनवाने और उसके प्रति अपना संकल्प बताने में लगायें।
लेखक: अरुण तिवारी
लोकतांत्रिक पिरामिड को सही कोण पर खड़ा करने के पांच सूत्र हैं: लोक-उम्मीदवार, लोक-घोषणापत्र, लोक-अंकेक्षण, लोक-निगरानी और लोक-अनुशासन। लोक-घोषणापत्र का सही मतलब है, लोगों की नीतिगत तथा कार्य संबंधी जरूरत व सपने की पूर्ति के लिए स्वयं लोगों द्वारा तैयार किया गया दस्तावेज। प्रत्येक ग्रामसभा व नगरीय वार्ड सभाओं को चाहिए कि वे मौजूद संसाधन, सरकारी-गैरसरकारी सहयोग, आवंटित राशि तथा जनजरूरत के मुताबिक अपने इलाके के लिए अगले पांच साल के सपने का नियोजन करें। इसे लोकसभावार, विधानसभावार, मोहल्लावार व मुद्देवार तैयार करने का विकल्प खुला रखना चाहिए। इसमें हर वर्ष सुधारने का विकल्प भी खोलकर रखना अच्छा होगा। इस लोक एजेंडे या लोक नियोजन दस्तावेज को लोक-घोषणापत्र का नाम दिया जा सकता है। इस लोक-घोषणापत्र को किसी बैनर या फलेक्स पर छपवाकर अथवा सार्वजनिक मीटिंग स्थलों की दीवार पर लिखकर चुनाव प्रचार के लिए आने वाले चुनावी उम्मीदवारों के समक्ष पेश किया जा सकता है। उनसे उसकी पूर्ति के लिए संकल्पपत्र/शपथपत्र लिया जा सकता है। इससे उम्मीदवार के चयन में सुविधा होगी और पालन करने के लिए उम्मीदवार के सामने अगले पांच साल एक दिशा-निर्देश भी होगा।
जल घोषणापत्र, हरित घोषणापत्र, उत्तराखण्ड जन घोषणापत्र – नागरिक संगठन स्तर पर ऐसे प्रयास होते रहे हैं। किंतु आदर्श स्थिति हासिल करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। फिलहाल, चर्चा करें कि दिल्ली के इस चुनाव में पार्टी घोषणापत्र बनाने में एक बार फिर से जनता की राय मांगी जा रही है। हमें इस रायशुमारी को एक सुअवसर मानना चाहिए; पार्टी घोषणापत्र से लोक घोषणापत्र की ओर बढ़ने की एक छोटी सी खिड़की मान स्वागत करना चाहिए। इसमें खुद पहल कर पार्टियों और अपने विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार तक अपनी राय पहुंचानी चाहिए।
इन घोषणापत्रों को जमीन पर उतारने के लिए नीतिगत आवश्यकता होगी कि दिल्ली नियोजन क्रियान्वयन एवम निगरानी समिति का गठन हो। इसके तहत केन्द्र, राज्य, स्थानीय नगर व गांव अर्थात चार स्तरीय उपसमितियां हों। चार स्तरीय समितियों में आपसी तालमेल व पारदर्शिता की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था बने। चुनाव बाद के पांच साल के दौरान विकास संबंधी घोषणापत्र को पूरा करने में लोग सहयोगी भी बनें और विधायक द्वारा असहयोग करने पर बाध्य करने वाले भी; इसके लिए जन-निगरानी प्रणाली विकसित की जाए। लोक-प्रतिनिधियों के बजट से क्रियान्वित होने वाले कार्यों का लोक अंकेक्षण यानी ‘पब्लिक-आॅडिट’ अनिवार्य हो। आॅडिट सिर्फ वित्तीय नहीं, कैग के नए विविध सूचकांकों के आधार पर हो। ऐसे प्रावधानों को विधिसम्मत बनाने के लिए पार्टियां, इन्हे विधान का हिस्सा बनाने की घोषणा करें। लाभ यह होगा कि पांच साल पूरे होने पर लोक-अंकेक्षण समूह की रिपोर्ट खुद-ब-खुद इस बात का आइना होगी कि निवर्तमान प्रत्याशी उसमें अपना चेहरा देख सकें; जान सकें कि वह अगली बार चुनाव लड़ने लायक है या नहीं। इस आधार पर पर्टियां अपना उम्मीदवार तय कर सकेंगी और लोग भी कि उस प्रतिनिधि को अगली बार चुना जाये या दरकिनार कर दिया जाये। पांच सालों का लेखा-जोखा, अगले पंचवर्षीय कार्यों का नियोजन व तद्नुसार लोक-घोषणापत्र निर्माण में भी बराबर का मददगार सिद्ध होगा।
इसी दिशा में एक अन्य महत्वपूर्ण नीतिगत तथ्य यह है कि भारत के सभी राज्यों में गांवों में संवैधानिक स्तर पर गठित ग्राम सभा, ग्राम पंचायत और न्याय पंचायत है; विधानसभा के साथ केन्द्र शसित क्षेत्र वाली दिल्ली की तर्ज में नवगठित राज्य जम्मू-कश्मीर में भी। दिल्ली के गांवों के पास क्या है ? नये राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक, दिल्ली में 357 गांव हैं। क्या स्वराज का सपना दिखाने वालों को दिल्ली में ग्राम स्वराज का सर्वश्रेष्ठ ढांचा बनाने की पहल नहीं करनी चाहिए? उन्हें चाहिए कि दिल्ली पंचायतीराज अधिनियम बनाने को पार्टी घोषणापत्र में शामिल कर इस सपने की नींव रखें।
शुद्ध हवा, स्वच्छ पानी-पर्याप्त पानी, स्थानीय कचरा प्रबंधन और सर्व सुलभ पार्किंग-दिल्ली की चार बड़ी चुनौतियां हैं। दिल्ली के चारदीवारी वाले हर संस्थान, हर कार्यालयी-व्यावसायिक परिसर, हर हाउसिंग सोसाइटी परिसर को उसके परिसर के भीतर ही इन चारों की स्वावलम्बी व्यवस्था के लिए बाध्य व प्रोत्साहित…दोनों करने की नीतिगत घोषणा करनी चाहिए। ऐसे परिसरों का सीवेज निष्पादन भी परिसर के भीतर संभव है और यमुना प्रदूषण मुक्ति के लिए जरूरी भी। स्वावलम्बी जल प्रबंधन और धूल-धुआं प्रबंधन करना ही चाहिए। वाटर रिजर्व, ग्रीन रिजर्व व वेस्ट रिजर्व एरिया नीति इसमें मदद कर सकती है। जैम फ्री ट्रैफिक और भाड़े की मनमानी से मुक्त ऑटो चालक भी दिल्ली की आवश्यकता है। फैक्टरी-दफ्तरों-बाजारों के समय में अनुकूल बदलाव तथा ऐसी नियुक्ति नीति, जिसमें लोगों को अपने आवास से कम से कम दूरी तक सफर करना पड़े़; पर्यावरण बेहतरी के लिए जरूरी है।
जरूरत है कि नंबर दौड़ में लगाने की बजाय, स्कूली शिक्षा को प्रत्येक विद्यार्थी में पहले से मौजूद प्रतिभा के विकास पर केन्द्रित किया जाए। उनमें उनके आसपास के परिसरों के प्रति सकारात्मक सरोकार व संवेदना विकसित की जाए। आठवीं कक्षा के बाद प्रतिभानुसार अवसर देने के लिए मात्र खेल नहीं, नृत्य-संगीत-शिल्प विषयक श्रेष्ठ विशेषज्ञ स्कूलों की स्थापना की जाए। उच्च शिक्षा और फिर कोचिंग के लम्बे दुष्चक्र में फंस चुकी नई पीढ़ी को बचाने के लिए एनडीए, रेलवे अप्रेन्टिस की तर्ज पर पहल जरूरी है। कम से कम दिल्ली सरकार की हर छोटी-बड़ी नौकरी के लिए तो 10वीं-12वीं की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तथा चयन पश्चात पद की जरूरत के अनुसार एक से तीन साल का शिक्षण-प्रशिक्षण का प्रावधान किया जा सकता है। पढ़ाई, दवाई, सुरक्षा, यातायात, सुरक्षा, संचार, जलापूर्ति जैसे बुनियादी सेवा क्षेत्रों में ठेकेदारी व निजीकरण को हतोत्साहित करके दिल्ली सुरक्षित रोजगार का रास्ता प्रशस्त कर सकती है। दूसरे राज्यों से दिल्ली आ रही आबादी को उनके प्रदेश में रोकने के लिए दिल्ली सरकार को चाहिए कि वह उन राज्यों के शिक्षा और रोजगार के ढांचे को स्वावलम्बी बनाने में सहयोग करे। इसके लिए वह दिल्ली में मौजूद ज्ञान, कौशल व मानव संसाधन का उपयोग करे। इससे भी अंतत: रोजगार, दिल्लीवासियों का ही बढ़ेगा। स्वास्थ्य बीमा की आड़ में उपजी लूट की जगह, 50 वर्ष से अधिक उम्र के हर दिल्लीवासी के इलाज का जिम्मा। अधिकतम संभव लागत पर सुनिश्चित मुनाफा दर के आधार पर वस्तुओं की अधिकतम फुटकर बिक्री दर का निर्धारण। मूल आवश्यकता पार्टी, उम्मीदवार व नागरिक…तीनों द्वारा अपनी-अपनी जवाबदारी ईमानदारी से निभाने का मन बनाने की है। यदि हम यह कर पायें, तो तय मानिए कि तंत्र पर लोक की हकदारी एक दिन खुद-ब-खुद आ जायेगी। धीरे-धीरे हम सही मायने में लोकतंत्र भी हो जायेंगे।
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