‘काली’ फिल्म के विवादित पोस्टर का विरोध शुरू होने के बाद एक बार फिर धर्म व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या कला की स्वतंत्रता का मामला चर्चा का विषय बन गया है। अति व हठधर्मिता ही ऐसे विवादों के कारण बनते हैं जब कलाकार अपनी स्वतंत्रता के सही अर्थों को ना समझकर हठधर्मिता करता है तो कला का धर्म भंग हो जाता है। वास्तव में धर्म को मशीनी या तकनीकी नजरिये के चश्में से देखने की गलती ही विवादों की जड़ है। धर्म, धार्मिक विश्वास, चिन्ह्, प्रतीकों के पिछले संकल्प हजारों वर्षों की यात्रा कर आगे बढ़ रहे हैं। इन विश्वासों, प्रतीकों को विज्ञान या गणित के तरीके से नहीं समझा जा सकता। वैज्ञानिक विचारों वाले मनुष्य के लिए इतिहास कल्पना व असंभव वस्तुएं हैं जो केवल विश्वास पर आधारित हैं, लेकिन धर्म के प्रत्येक संकल्प का अपना अर्थ, संदर्भ व महत्व है।
हजारों वर्षों के बाद भी इतिहास आधुनिक साहित्य, समाज शास्त्र, मनोविज्ञान व इतिहास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। कलाकारों को अवश्य पता होना चाहिए कि वे धर्म व धार्मिक चिन्हें को समाज की खुशहाली के लिए प्रयोग करें। जहां तक कानून का संबंध है मनुष्य की भावनाओं को ठेस पहुंचाना अपराध है। कलाकार भी कोई अज्ञानी या गैर-जिम्मेदार व्यक्ति नहीं होता बल्कि वह समाज की बेहतरी के लिए सोचने वाला व्यक्ति होता है। समाज के लिए कोई अच्छा संदेश देने के सिवाय किसी साहित्यिक पुस्तक या किसी फिल्म का कोई औचित्य ही नहीं।
स्पष्ट शब्दों में कलाकार का काम विवाद पैदा करना नहीं है। धर्म के नाम पर हो रही बुराई को रोकना तो उचित है, लेकिन धर्म को बुरे व समाज विरोधी रूप में पेश करना गलत है। कई फिल्में ऐसी भी आर्इं हैं, जिन्होंने धर्म के नाम पर बुराईयों के खिलाफ आवाज उठाने के साथ-साथ धार्मिक सद्भावना को मजबूत किया। एक कलाकार को अपने निजी विचार पूरे देश पर नहीं थोपने चाहिए। कलाकार के साथ-साथ राजनेताओं को भी धर्म संबंधी आपत्तिजनक टिप्पणियां करने से बचना चाहिए। यह संकोच केवल कानून के भय के कारण नहीं बल्कि कलाकारों व राजनेताओं को अपने कर्तव्य व जिम्मेदारियों की तरफ भी देखना चाहिए।
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