डेरा सच्चा सौदा में होने वाली हर शादी की है अपनी अलग कहानी
- विवाह बंधन में बंधने से पहले करते हैं परोपकार
- अद्भुत ऐतिहासिक शादियां, अनोखी दास्तान
- एक-दो नहीं यहां हर शादी है दुनिया से निराली
- कोई बनी कुल का क्राऊन तो किसी ने नि:शक्तजन को अपनाया
- अब तक बगैर दान दहेज संपन्न हुए लाखों विवाह
सिरसा। किसी ने वेश्यावृत्ति की दलदल में धंसी युवतियों (शुभ देवियों )को जीवनसंगिनी बना लिया तो किसी ने कर्मों की मारी उस बदनसीब विधवा को हमसफर बनाकर सहारा दिया जिसका पति जवानी में ही भगवान को प्यारा हो गया। कुछ ऐसे भी योद्धा जिन्होंने उन तलाकशुदा महिलाओं को अपनी अर्धांगिनी बना उनके साथ जीवन जीने का फैसला लिया जिनके पहले पति व ससुरालियों ने उन्हें किसी भी वजह से घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इतना ही नहीं कई तो ऐसे शूरवीर जिन्होंने उन युवतियों(कुल का क्राऊन)को हमसफर चुना जो अपने मां-बाप की इकलौती संतान हैं या फिर उनका कोई भाई नहीं है। वे युवक ससुराल में ही रहकर सास-ससुर की ठीक उसी तरह से सेवा कर रहे हैं।
जैसे कि वह अपने मां-बाप की संभाल करते हैं। वेश्याओं (शुभ देवियों) व विधवाओं की जिंदगी में नया सवेरा लाने व उन्हें समाज में फिर से सम्मान दिलाने के साथ-साथ मानवता भलाई कार्यों में अग्रणीय सर्वधर्म संगम डेरा सच्चा सौदा ने निशक्तों, अपंगों व विधुरों के जीवन के असल दर्द को भी समझा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के एक आह्वान पर वीरांगनाओं ने जीवन की सबसे बड़ी कुबार्नी देते हुए न केवल विकलांगों व विधुरों की जीवनसंगिनी बनने का संकल्प लिया है बल्कि उन्हें अपना भी रही हैं।
कोई खूनदान तो कोई लेता है शरीरदान का प्रण
आप जानकर हैरान होंगे कि डेरा सच्चा सौदा में होने वाली इन शादियों में वर व वधू को शादी से ज्यादा परोपकार का चाव रहता है क्योंकि शादी से पहले कई नवदंपत्ति व उनके परिवार खूनदान करते हैं तो कई पौधारोपण। इतना ही नहीं इस अवसर पर कुछ नवदंपति व उनके परिवार दीन-दु:खियों के लिए परमार्थ भी करते हैं साथ ही परिवार के कुछ सदस्य नियमित खूनदान का संकल्प लेते हैं तो कुछ जीते-जी गुर्दा दान व मरणोपरांत शरीरदान का। बता दें कि अब तक लाखों लोग ये संकल्प ले चुके हैं।
इस तरह हुई शुरूआत
जब दहेज का दानव पैर पसार रहा था तो डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने दहेज के इस अभिशाप से मुक्ति दिलाने व शादियों में की जाने वाली फिजुलखर्ची से बचाने के लिए आवाम को बगैर किसी दान दहेज शादी करने का संकल्प करवाया तथा आश्रम में ही शादियों की शुरूआत कर दी। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने भी उक्त परंपरा को जारी रखा है तथा तब से लेकर अब तक डेरा सच्चा सौदा में बगैर दान दहेज के लाखों शादियां संपन्न हो चुकी हैं।