केंद्र की एनडीए सरकार ने वर्ष 2022-23 के वित्तीय बजट में किसी भी वर्ग को कोई बड़ी राहत नहीं दी। व्यवसायिक क्षेत्र ने बजट को प्रभावशाली और आत्मनिर्भर भारत की दिशा वाला बजट बताया, विपक्षी दलों ने बजट को नकार दिया। वास्तव में कोविड महामारी में जिस प्रकार से उद्योग, बाजार और नौकरियों का संकट गहराया, बजट में उसके अनुरूप निर्णय नहीं लिए गए। मध्यम और छोटे उद्योगपति जिस प्रकार मंदी की चपेट में आए हैं, उन्हें राहत की उम्मीद थी जो नहीं मिली। नि:संदेह बजट लोग लुभावना नहीं लेकिन आम बजट जनता, मध्यम वर्ग और छोटे उद्योगपतियों को कोई तत्काल राहत नहीं दे सका जिसकी आवश्यकता थी। पहले कोविड महामारी और अब बढ़ती महंगाई जनता का कचूमर निकाल रही है।
महंगाई को लगाम लगाने के लिए प्रगतिशील निर्णय लिए जाने चाहिए थे। जहां तक मनरेगा के लिए 73000 करोड़ रुपये का सवाल है, यह भी विगत वर्ष की तरह 96000 करोड़ या इससे बढ़ाने की आवश्यकता थी। महंगाई के कारण बाजारों में मांग घटी है, जिससे छोटे उद्योगपति आधे कर्मचारियों के साथ काम चला रहे हैं। इन परिस्थितियों में बेरोजगारी से निपटने के लिए कोई निर्णय नहीं लिया गया। यह आवश्यक है कि 80 लाख मकान बनाने के लक्ष्य से रोजगार में कुछ वृद्धि होगी लेकिन मध्यम वर्ग और कर्मचारी वर्ग को कोई राहत नहीं। यह बड़ा अटपटा है कि आरक्षण का हकदार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की आय सीमा आठ लाख रुपए है, दूसरी ओर ढाई लाख तक की आय वालों को आयकर टैक्स देना पड़ रहा है।
यदि आठ लाख तक आय वाला व्यक्ति टैक्स देता है तब उसे आरक्षण का अधिकार कैसे मिला? बजट में गैर करदाताओं जैसे किसानों, मजदूरों और गरीबों को भी तुरंत राहत नहीं दी गई। पॉलिश किए हीरे सस्ते करना ज्यादा जरूरी नहीं था बल्कि कपड़ों, बूट, चप्पलों और मकान निर्माण सामग्री सस्ती की जानी चाहिए थी। सीमेंट और सरिया की कीमतें उछाल पर हैं। किसानों को सब्जियों और फलों की काश्त के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कोल्ड स्टोर खोलने की बड़ी योजना बनाई जा सकती थी। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों की बदहाली को दूर करने के लिए प्रयास किए जा सकते थे। फ्री बांटने की रणनीति छोड़ी जा सकती है लेकिन आर्थिक मंदी दूर करने के लिए पैकेज आवश्यक था।
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