काली कमाई से प्रभावित होती है उत्पादकता

Pandora Papers

पैंडोरा पेपर्स जैसे खुलासे हमारी अर्थव्यवस्था की गड़बड़ियों को उजागर करते हैं। यह कोई पहला मामला नहीं है। पनामा पेपर्स, पैराडाइस पेपर्स जैसे कई खुलासों के हम गवाह रहे हैं। इन सबमें बताया गया है कि किस तरह से देश से पैसा निकालकर विदेश भेजा गया और टैक्स से बचने की पूरी कोशिश की गई। संपन्न तबका ऐसा करता है, ताकि उसे अपनी आमदनी पर पूरा कर न चुकाना पड़े। अच्छी बात है कि सरकार ने देर किए बगैर इनकी कई एजेंसियों से जांच के आदेश दे दिए हैं। मगर इस मामले में व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बगैर ठोस कुछ हासिल नहीं हो पाएगा। किसी कंपनी या ट्रस्ट के वास्तविक स्वामित्व की पहचान सुनिश्चित करने के लिए भी विभिन्न देशों की सरकारों के बीच सहयोग और तालमेल जरूरी है। और, कहने की आवश्यकता नहीं कि इस दिशा में पहला कदम यही हो सकता है कि कंपनी या ट्रस्ट के वास्तविक मालिक की पहचान सुनिश्चित करने का आसान तरीका निकाला जाए।

पिछले एक दशक में 100 की सूची से बढ़कर आज इस सूची में 1,007 लोग शामिल हैं, जिनमें भारत में अरबपतियों की संख्या पिछले साल के 54 से बढ़कर 237 हो गई है। ऐसा नहीं है कि हमें अपनी चूक का ज्ञान नहीं है। पिछले सात दशकों में काली कमाई को रोकने के लिए 30-40 कमेटियां बन चुकी हैं। सैकड़ों कदम उठाए गए हैं। 1971 में आयकर की दर 97.5 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी की गई, 1991 में उदार अर्थव्यवस्था अपनाकर कई तरह के नियंत्रण हटाए गए, फिर भी काला धन अपनी रफ्तार से बढ़ता रहा है। दरअसल, भ्रष्ट उद्योगपतियों, राजनेताओं, पुलिस व आयकर विभाग के अधिकारियों की सांठगांठ इसका पोषण करती है। जब तक इस पर नियंत्रण नहीं किया जाएगा, काली कमाई का निर्माण नहीं रुकेगा।

इसलिए अब वक्त आ गया है कि अब जी-20 को तमाम टैक्स हेवंस के लिए कोई समय सीमा तय कर देनी चाहिए। उन्हें लीगल आॅनर्स से जुड़ी सभी सूचनाएं इसलिए भी मुहैया करानी हैं ताकि 15 फीसदी ग्लोबल मिनिमम टैक्स से जुड़े समझौते पर अमल हो सके। इस समझौते का भी मकसद टैक्स हेवंस खत्म करना ही है। साफ है, काली कमाई हमारी उत्पादकता प्रभावित कर रही है। इससे काम की गुणवत्ता पर भी खासा असर पड़ रहा है। ऐसे में, हमें इसको हल्के में नहीं लेना चाहिए। अगर काली कमाई आज इतनी न होती, तो उत्पादकता बढ़ने की वजह से हमारी अर्थव्यवस्था 2.5 ट्रिलियन डॉलर की जगह तकरीबन 20 ट्रिलियन डॉलर की होती और हम उन्नत राष्ट्रों में शामिल होते। यह अब भी मुमकिन है, बशर्ते काली कमाई का निर्माण हम रोक पाएं।

 

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