कक्षा में उत्साह और डर का माहौल था। गणित के अध्यापक को परीक्षा लेनी थी। अध्यापक ने सवालों के सही हल करने वाले को पुरस्कार की घोषणा कर दी थी। सवाल थोड़े कठिन थे। इसलिए पुरस्कार को लेकर तो विद्यार्थियों में उत्साह था, लेकिन सवाल हल नहीं हो पाने के कारण वे डरे हुए थे। काफी देर विद्यार्थी सवालों को हल करने की कोशिश करते रहे। आखिर में एक विद्यार्थी उठा और अध्यापक को अपनी उत्तर पुस्तिका दिखाई। सवाल सही ढ़ंग से हल किए गए थे और उत्तर भी सही थे। अध्यापक ने उसकी पीठ थपथपाई और पुरस्कार देकर सम्मानित किया। अन्य विद्यार्थी कमजोर माने जाने वाले विद्यार्थी द्वारा सबसे पहले उठने और सवाल हल कर दिखाने से हैरान थे। अगले दिन जैसे ही अध्यापक कक्षा में आए पुरस्कार विजेता विद्यार्थी उनके पैरों से लिपट गया और फूट-फूट कर रोने लगा।
अध्यापक ने पूछा- तुम क्यों रो रहे हो। तुमने तो पुरस्कार जीत कर अच्छे विद्यार्थी होने का परिचय दिया है। तुम्हें तो खुश होना चाहिए। विद्यार्थी ने कहा- आपके द्वारा दिए गए पुरस्कार का मैं अधिकारी नहीं हूँ। मैंने किताब से नकल करके सवालों का हल किया था। मुझे मेरी गलती के लिए क्षमा कर दें। भविष्य में ऐसी गलती नहीं होगी। अध्यापक ने कहा- तुम्हें सवालों का सही हल नहीं आता। लेकिन तुम्हें किसी को धोखा देना भी नहीं आता। गलत ढ़ंग से कोई काम करने पर तुम्हारी आत्मा तुम्हें कचोटती रही। तुमने आत्मा की आवाज सुनकर अपनी गलती स्वीकार कर ली। अपनी गलती मान लेने वाले बड़े होकर बड़ा काम और ऊंचा नाम करते हैं। अध्यापक ने उसे गले से लगा लिया। गलती स्वीकार करके अध्यापक के स्नेह का पुरस्कार पाने वाले वे व्यक्ति गोपाल कृष्ण गोखले थे।
–अरुण कुमार कैहरबा
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