बात उन दिनों की है, जब हमारे देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन मजबूत होता जा रहा था। अंग्रेज अपने-आपको भारतीयों से बहुत ऊंचा मानते थे। भारतीयों से बुरा बर्ताव करना उनकी दिनचर्या बन चुका था। वे भारतीयों को बहुत परेशान करते थे उनके सामने कोई भी हिंदुस्तानी पालकी या घोड़े की सवारी नहीं कर सकता था।
एक दिन राजा राममोहन राय एक पालकी में बैठ कर कहीं जा रहे थे। रास्ते में कलेक्टर हेमिल्टन खड़ा था। उसे देखकर भी राम मोहन राय पालकी से नीचे नहीं उतरे। हेमिल्टन गुस्से से लाल-पीला हो गया। उसे यह नागवार गुजर रहा था कि एक हिंदुस्तानी उसके सामने से पालकी में बैठकर निकले। उसने पालकी रुकवा ली। राममोहन राय नीचे उतर आए और विन्रमतापूर्वक कलेक्टर हेमिल्टन से पूछा कि बात क्या है? हेमिल्टन गुस्से से आग बबूला हो गया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा। उस समय राममोहन राय ने बात बढ़ाना ठीक नहीं समझा। वह हेमिल्टन की उपेक्षा कर पालकी में वापस जा बैठे और आगे बढ़ गए। उन्होंने इस बात की शिकायत लार्ड मिंटो से की। लार्ड मिंटो ने हेमिल्टन को मामूली चेतावनी देकर बात समाप्त कर दी पर राममोहन राय इतने से ही संतुष्ट नहीं हुए। उनके एक मित्र ने उन्हें समझाया कि अब तो हेमिल्टन को उसके लिए झाड़ भी पड़ चुकी है इसलिए बात बढ़ाने से कोई फायदा नही है। पर राजा राम मोहन राय चुप नहीं रहे।
राजा राममोहन राय बोले- यह भारत के स्वाभिमान का मुद्दा है। अगर अभी इस भेदभाव का विरोध नहीं किया गया तो यह समस्या बढ़ती ही जाएगी। उन्होंने हिंदुस्तानियों से अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे बुरे बर्ताव के खिलाफ कानून बनवाने की ठान ली और बाद में अपने अथक प्रयासों से ऐसा कानून बनवाने में सफल भी हुए।
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