हरियाणा के बारानी इलाकों में ग्वार एक महत्वपूर्ण फसल है। प्रदेश के रेतीले इलाकों में जड़गलन रोग ग्वार फसल में एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। उखेड़ा रोक के प्रकोप से 20 से 45 प्रतिशत खड़ी फसल मुरझाकर सूख जाती है। लेकिन इस रोक को किसान मात्र 15 रूपए के बीज उपचार से रोक सकते हैं। ग्वार विशेषज्ञ डॉ. बीडी यादव ने कहा कि ग्वार में कम पैदावार होने का उखेड़ा बीमारी एक मुख्य कारण है। किसानों को इस रोक के प्रति जानकारी न होने से इसका ज्यादा नुक्सान उठाना पड़ता है। गोष्ठी के दौरान किसानों से रूबरू होने पर पता चला कि यह उखेड़ा बीमारी कम से कम 30 प्रतिशत इस क्षेत्र में आती है।
जड़गलन रोग के लक्षण
डॉ. यादव ने बताया कि उखेड़ा यानि जड़गलन बीमारी के शुरूआती लक्षण में पत्ते पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं और धीरे-धीर मुरझाकर सूख जाते हैं। ऐसे पौधों को जब उखाड़ कर देखते हैं तो उनकी जड़े काली मिलती है।
बीमारी का इलाज
डॉ. यादव ने बताया कि इस रोक की फफूंद जमीन के अंदर पनपती है, जो उगते हुए पौधों की जड़ों पर आक्रमण करती है। इस प्रकोप से पौधे की जड़ें काली पड़ जाती है तथा जमीन से उनकी खुराक रूक जाती है। इसलिए पौधों पर स्पे्र करने का कोई फायदा नहीं होती। इस बीमारी की रोकथाम के लिए 3 ग्राम कार्बन्डाजिम 50 प्रतिशत बेविस्टीन प्रतिकिलो बीज की दर से सूखा उपचारित करने के बाद ही बिजाई करनी चाहिए। ऐसा करने से 80 से 85 प्रतिशत इस रोक पर काबू पाया जा सकता है। जड़गलन रोक का यह इलाज केवल 15 रूपए के बीजोपचार से संभव है। ग्वार विशेषज्ञ ने इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीजोपचार ही एकमात्र हल बताया।
ग्वार की कौन-सी किस्मे अपनाएं
डॉ. यादव ने किसानों को उन्नतशील किस्में एचजी 365, एचजी 563 तथा एचजी 2-20 बोने की सलाह दी तथा बिजाई के लिए जून का दूसरा पखवाड़ा सबसे उचि बताया। उन्होंने कहा कि जो किसान अभी तक बिजाई नहीं कर पाए हैं आगे मॉनसून की बारिश होने पर बिजाई पांच जुलाई तक पूरी कर लें। इसके बाद पैदावार में कमी होनी शुरू हो जाती है।
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