फतेहाबाद में राष्टपति रामनाथ कोविंद ने जनसभा को किया संबोधित
फतेहाबाद (सच कहूँ न्यूज)। देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कबीर महाकुंभ से भारतीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में संत शिरोमणि कबीर के विचारों की प्रासंगिकता का जिक्र करते हुए लोकतंत्र के मंदिरों के जनप्रतिनिधियों को बेहद अहम पाठ पढ़ाया। संत कबीर को उनकी 620वीं जयंती पर पुष्पांजलि देने के बाद राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि कबीर पंथ के रास्ते ही पंथनिरपेक्षता आती है।उन्होंने कहा कि कबीर की वाणी न केवल सही व्यक्ति, समाज व राष्ट्र को सही दिशा देती है बल्कि अगर उसे व्यावहारिकता में उतारें तो लोकतंत्र को भी ताकत मिलेगी। वह यहां धानक समाज द्वारा आयोजित कबीर महाकुंभ में समस्त उत्तर भारत से आए प्रतिनिधियों को संबोधित कर रहे थे।
सांसदों व विधायकों से कबीर वाणियों को आत्मसात का आह्वान
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मानसून सत्र से ही कबीर की वाणियों को मन, कर्म व वचन से आत्मसात का आह्वान देशभर के सांसदों व सभी राज्यों के विधायकों से किया। उन्होंने कहा कि पूरे देश में मानसून आ चुका है। लोकतंत्र के मंदिरों में मानसून सत्र शुरू होने वाले हैं। उनका विश्वास है कि देश के हर क्षेत्र के सांसद व सभी राज्यों के विधायक लोकतंत्र के मूलमंत्र अर्थात चर्चा, परिचर्चा व संवाद के माध्यम से जनहित के कार्यों को आगे बढ़ाएंगे।
कबीर पंथ का रास्ता ही पंथ निरपेक्षता का मार्ग
उन्होंने कहा कि समरस समाज की स्थापना के पैरोकार संत कबीर की वाणी को व्यावहारिक पटल पर उतारने की जरूरत है। सही मायनों में कबीर पंथ का रास्ता ही पंथ निरपेक्षता का मार्ग है। राष्ट्रपति ने कबीर को किसी एक समाज अथवा समुदाय से जोड़ने वालों को भी नसीहत दी कि वह सभी के थे। उनकी वाणी सबके लिए है और वह हमें सही दिशा में ले जाती है। लोकतंत्र को भी इससे ताकत मिलेगी। संबोधन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संविधान निर्माता बाबा सहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की विचारधारा को भी संत शिरोमणि कबीर से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर के चिंतन पर कबीर का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। कबीर के विचारों से ही प्रेरित होकर उन्होंने कमजोर व निरीह लोगों के हित की बात की थी।
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