अमेरिका में इतिहास रचने की तैयारी

America War Strategy

तीन नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव की बिसात बिछ चुकी है। मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मुकाबला दो बार उपराष्ट्रपति रह चुके डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन के साथ है। हालांकि कोरोना संक्रमण के चलते चुनावों में वह उत्साह और रोमांच का माहौल दिखाई नहीं दे रहा है, जिसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव दुनियाभर में जाने जाते हंै। लेकिन इसके बावजूद दोनों प्रमुख उम्मीदवार चुनाव मैदान में हर उस हथकंडे की आजमाइश कर रहे हैं, जिसके जरिए वो अपने प्रतिद्वंद्वी को मात दे सके। अब, डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन ने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में भारतीय-अफ्रीकी मूल की सीनेटर कमला हैरिस को मैदान में उतारकर रिपब्लिकन उम्मीदवार व मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सामने चुनौती पेश कर दी है।

बाइडेन पुराने और मंझे हुए राजनीतिज्ञ हंै। उनके पास बराक ओबामा जैसे कुशल व सफल राष्ट्रपति के साथ दो बार (आठ वर्ष) उपराष्ट्रपति पद पर काम करने का व्यवहारिक अनुभव है। इस अनुभव का लाभ बाइडेन राष्ट्रपति चुनाव में लेना चाहते हंै। वे इन चुनावों में ब्लेक एंड व्हाइट के कॉम्बिनेशन के साहरे आगे बढ़ना चाहते हंै। दरअसल, अमेरिका में पिछले दिनों अश्वेत अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद ट्रंप प्रशासन का जो रूख रहा उससे अश्वेतों में सरकार के खिलाफ गुस्सा है। बाइडेन अश्वेतों के इसी गुस्से को ट्रंप के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं। अपने गेम प्लान के मुताबिक उन्हें एक ऐसे चेहरे की तलाश थी, जो अश्वेत अमेरिकी नागरिकों की सरकार विरोधी भावनाओं का लाभ दिलाने के साथ-साथ हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप के चलते भारतीय समूह के मतदाताओं में बने ट्रंपके प्रभाव को कम कर सके। वे जानते हैं कि इस काम के लिए हैरिस से बढ़कर दूसरा दमदार चेहरा कोई और नहीं होे सकता है। हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर बाइडेन अश्वेत अमेरिकी मतदाता और भारतीय मतदाताओं को तो आकर्षित करेंगे ही साथ ही महिला वोटरों को लुभाने का काम भी कर सकेंगे।

हालांकि, नस्लीय भेदभाव को लेकर हैरिस और बाइडेन के बीच भी वैचारिक मतभेद रहे हैं। पार्टी के अंदर और बाहर अनेक अवसरों पर दोनों एक-दूसरे की आलोचना कर चुके हैं। डेमाक्रेटिक कैंडिडेट की एक डिबेट में भी उन्होंने बिडेन पर नस्लवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगाए थे। सच तो यह है कि कमला हैरिस बाइडेन की कुछ नीतियों की शुरू से ही विरोधी रही है। उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार घोषित किये जाने से पहले हैरिस ने डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति चुनाव के लिए दावेदारी पेश की थी। हालांकि प्राइमरी चुनावों में वो बाइडेन और बर्नी सैंडर्स से पिछड़ने के बाद बाइडेन के समर्थन की घोषणा करके चुनाव मैदान से हट गयी थीं।

55 वर्षीय कमला हैरिस को अमेरिका में भारतीय और अफ्रीकी अमेरिकी के तौर पर जाना जाता है। पार्टी उन्हें नस्लीय समानता का प्रतीक बताकर प्रचार कर रही है। यह सच भी है। वो जितनी भारतीय मूल की हैं, उतनी ही अफ्रीकी मूल की भी है। उनकी मां श्यामला गोपालन भारत के तमिलनाडु राज्य की थी। कमला के अश्वेत पिता डोनाल्ड हैरिस जमैका के हैं।

सामान्यतया अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों को डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थक माना जाता है। यही कारण है कि चाहे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा रहे हों या पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन सभी ने भारतीयों को साधने वाली नीतियों का समर्थन किया है। पिछले दिनों जब ट्रंप ने एच-1बी वीजा पर सख्त प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया तो डेमोक्रेटस ने ट्रंप के निर्णय की आलोचना करते हुए आदेश को बदलने की मांग थी। अब कमला को उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर डेमोक्रेटस भारतीयों के साथ ही अफ्रीकी मूल के नागरिकों को भी यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी पार्टी हमेशा अल्पसंख्यक अमेरिकी नागरिकों के साथ खड़ी रहेगी। दूसरी ओर, अमेरिका के भीतर भारतीय मूल के मतदाताओं का एक वर्ग ऐसा भी है, जिनका मानना है कि हैरिस स्वयं को भारतीय मूल की कहलाने के बजाए अमेरिकी या अफ्रीकी मूल की कहलाना ज्यादा पंसद करती हैं। विदेश नीति की मुद्दों की समझ उनमें नहीं है। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने और उसके बाद लगे प्रतिबंधों को लेकर कमला हैरिस का भारत विरोधी रूख सामने आ चुका है। ऐसे में लोगों को इस बात का भी संदेह है कि वह भारत से जुड़े मुद्दों को निबटाने में सक्षम होगी?

2015 की यूएस की जनगणना के मुताबिक अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की संख्या 2.4 मिलियन है। ये अमेरिका में रहने वाले प्रवासियों की आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है। यहां भारतीय मूूूल के वोटरों की संख्या 15 लाख के करीब है। न्यूयॉर्क, शिकागो जैसे कई मेट्रोपोलिटिन एरिया है, जहां भारतीय मूल के लोग चुनाव को प्रभावित कर सकते हंै। यही वजह है कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार भारतीयों को रिझाने के प्रयास में लगे हैं।

पूर्व राष्टÑपति बराक ओबामा ने सार्वजनिक तौर पर कमला के नाम को प्रस्तावित करते हुए उन्हें निडर फाइटर और देश की बेहतरीन जनसेवक बताया। स्पीकर नैंसी पेलोसी और पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भी कमला को बिडेन का मजबूत पार्टनर बताया है, यह सही भी है। निसंदेह हैरिस काबिल हंै, वो अमेरिकी संस्कृति की गहरी जानकारी रखती है। लेकिन अमेरिका का राजनीतिक इतिहास कुछ ओर ही है। अमेरिका के इतिहास में अभी तक केवल दो बार कोई महिला उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनी है। 1984 में डेमोक्रेट गेराल्डिन फेरारो और 2008 में रिपब्लिकन सारा पालिन को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया गया था। लेकिन जीत अभी तक किसी भी उम्मीदवार को नहीं मिली है।

निसंदेह, डेमोक्रेट्स ने भारतीय-अमेरिकी वोटों को विभाजित करने के लिए कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। हैरिस की उम्मीदवारी से बाइडेन को इन चुनावों में कितना लाभ मिल पाता है, यह तो आने वाले अगले कुछ दिनों में स्पष्ट हो पोगा, लेकिन हैरिस का बाइडेन के प्रति जो रूख है, वो कंही न कहीं चिंतनीय है। डोनाल्ड ट्रंप हैरिस के व्यवहार की आलोचना कर चुकें है। ट्रंप ने तो यहां तक कह चुके हैं कि हैरिस जिस तरह का बर्ताव बाइडेन से करती हैं, वो बेहद खराब है, इसलिए मैं उन्हें चुनौती के तौर पर लेता ही नहीं । ट्रंप अपने चुनाव अभियान व प्रेसीडेंशियल बहस में यह बात जरूर उठाएंगे कि डेमोक्रेटिक पार्टी में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बीच वैचारिक मतभेद है, ऐसे में यदि डेमोक्रेटस उम्मीदवार जीतते हैं, तो इन मतभेदों का खामियाजा अमेरिका को उठाना पड़ सकता है। अगर ऐसा होता है, तो अमेरिकी आबादी में 13 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले अश्वेत समुदाय के मतदाताओं की राय तो विभाजित होगी ही साथ ही अमेरिकी राजनीति में बनने वाले सुनहरे इतिहास का एक ओर प्रयास धुंधला पड़ सकता है।

                                                                                                              -एन.के. सोमानी

 

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