‘‘एक महिला के लिए उसके जीवन में गर्भावस्था एक ऐसा पल होता है जिसमें वह ‘मां’ बनती है। गर्भावस्था के दौरान महिला को किन-किन जरूरी बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये इसे लेकर असमंजस रहती है। ऐसे में आज ‘‘सच कहूँ संस्कारशाला’’में महिला उत्थान की दिशा में एतिहासिक व अनगिनत मुहिम का आगाज करने वाले पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूहानी सत्संगों के माध्यम से फरमाये गए उन अनमोल वचनों को आपके समक्ष लाया गया है, जो गर्भावस्था के दौरान एक महिला के लिए रामवाण का काम करेंगे।
पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मां के गर्भ में जब बच्चा आ जाता है तब से रूटीन बना लो कि सुबह-शाम कम से कम आधा घंटा प्रभु के नाम का सुमिरन जरूर करुंगी। और पति भी यह रूटीन बना ले कि सत्संग की सीडी, भजनों की सीडी खुद भी सुनेगा और अपनी पत्नी को भी सुनाए। ताकि मां के गर्भ में ही भजन व सत्संग सुनकर बच्चे के संस्कार अच्छे बन जाएं। आप जी ने फरमाया कि माता-पिता को चाहिए कि आपस में लड़ाई न करें। प्यार, मुहब्बत की चर्चा करें।
बच्चे को फीड देते समय, प्रभु के नाम का करें सुमिरन
बच्चा जब मां के गर्भ में होता है, तो मां को पौष्टिक आहार लेना चाहिए। अच्छे डॉक्टरों से राय लेकर मिनरल, विटामिन्स जिसकी भी जरूरत है वो खाते रहना चाहिए। खाना छोड़ना नहीं चाहिए। गेहूं की रोटी व दाल पकाकर खानी चाहिए। माता को खाना अच्छा खाना चाहिए ताकि बच्चा मजबूत हो और अच्छे विचारों का स्वामी रहे। डॉक्टर्स के हिसाब से भी समय-समय पर चैकअप करवाते रहना चाहिए। बच्चा पैदा होने के बाद मां जब भी बच्चे को फीड देती है उस समय भी प्रभु के नाम का सुमिरन करते रहना चाहिए। इस स्थिति में भी मां को पौष्टिक भोजन खाना चाहिए ताकि बच्चे को स्वस्थ दूध मिल सके। जब बच्चा दूध छोड़ देता है तब आप अपने शरीर को जिस मर्जी तरीके से तराश लें।
गर्भावस्था के दौरान पत्नी से झगड़ा न करे पति
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जब पत्नी गर्भवती है तो पति को चाहिए कि वह कभी भी पत्नी से झगड़ा न करे। पति को भी इसमें डटकर साथ देना होगा, खाने के लिए अच्छी चीजें उपलब्ध करवाए। ताकि बच्चा तंदरूस्त हो। शरीर तंदरूस्त होगा तो, तंदरूस्त सोच होगी, भक्ति करेगा तो यकीनन समाज को बदल सकता है। समाज में फैली काम-वासना, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, मन व माया, भ्रष्टाचार, ठग्गी, बेईमानी को उठा कर फेंक सकता है। पीढ़ियों के भले के लिए यह जरूरी है।
बच्चे को पूरा दिन डाइपर में बांधकर न रखें
आप जी ने फरमाया कि आजकल बच्चे को डाइपर पहना देते हैं। बच्चों को इससे पूरा दिन बांध कर न रखें, कभी सफर में हो तो कोई बात नहीं, लेकिन घर में बच्चे को यह नहीं पहनाने चाहिए। यह भी प्रकृति के विरुद्ध है। बच्चे के अंगों को विकसित होना होता है। मां-बाप ही डरते रहते हैं कि कहीं कपड़े गीले न कर दे। आप जी ने फरमाया कि शुद्ध कॉटन का कपड़ा बिछाकर उस पर बच्चे को लेटाना चाहिए। बच्चे को हाथ पैर मारने दो। खुले कपड़े बच्चों को पहनाकर रखो ताकि बच्चे को घूटन महसूस न हो।
मां-बाप ही बच्चे के पहले टीचर
आप जी ने फरमाया कि बच्चा जब बोलना सीखता है तो उसे राम का नाम सीखाओ। अच्छी चीजें सिखाओ। ये काल की नगरी है। काल की चीजें मत सिखाओ। मालिक की चर्चा करो। बच्चे को घर से ही पढ़ाई शुरू करवा दो। जितनी जल्दी मां-बाप बच्चे को शिक्षा दे सकते हैं शायद टीचर उतनी जल्दी नहीं दे सकते। आप जी ने फरमाया कि कुछ समय मां-बाप ही बच्चे को शिक्षा दे उसके बाद अच्छे स्कूल में पढ़ाएं। बच्चे की भी बात सुनों लेकिन टीचर से भी बच्चे के बारे में जानकारी लेते रहें। बेटी है तो बचपन से उसे इतना मजबूत बनाओ कि वो अबला न बने। अच्छे संस्कार दो, लड़के के बराबर समझो व एक जैसा प्यार दिया करो।
-संकलन एवं संपादन: विजय शर्मा
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।