किसी जमाने में चाणक्य ने कहा था कि राजनीति में अच्छे आदमियों को सदैव सक्रिय रहना चाहिए, अन्यथा राजव्यवस्था पर बुरे लोगों का अधिपत्य हो जाता है। बिहार की वर्तमान परिस्थितियों ने चाणक्य की उक्ति को परिभाषित कर दिया है। राजनीतिक तौर पर भले ही मीडिया का एक वर्ग केन्द्र की भाजपा सरकार पर सीबीआई के मनमाने प्रयोग के लिए आरोप लगाए, परंतु इस बात को नहीं झुठलाया जाना चाहिए कि गंभीर मामलों में आरोपित व्यक्ति जिसकी गिरफ्तारी होनी है, वह सरकार के संवैधानिक पदों पर बना नहीं रह सकता।
लालू प्रसाद यादव, जोकि भारत में भ्रष्टाचार एवं जंगलराज के प्रर्याय बने हुए हैं, उनकी रीति-नीति की वजह से नीतिश कुमार जैसा व्यक्ति जोकि ईमानदारी एवं सुशासन का पर्याय है, राजप्रबंध छोड़कर एक तरफ हो गया है। यह घटनाक्रम राजनीतिक क्षेत्र में भले ही घटित हुआ है, लेकिन इस घटनाक्रम ने देशभर में ईमानदारीपूर्ण जीवन जीने वालों, भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने वालों का आत्मबल डिगा दिया है। अभी तक देश की राजनीति में यह हो रहा था कि ईमानदार उम्मीदवारों को अपराधिक किस्म के उम्मीदवार अपने छल-बल एवं हिंसा से हरा रहे थे। विधानसभा एवं संसद में हार्स ट्रेंडिंग करने वाले, मतदाता की इच्छाओं को कुचलकर अपनी जीत सुनिश्चित करते देखे गए थे।
नीतिश कुमार का इस्तीफा तो ईमानदारों को शीर्ष पदों पर चुने जाने के बावजूद भी हरा देने वाला मंजर बन गया है। देश भ्रष्टाचार के आगे घुटने टेक रहा है। इस तरह भ्रष्टाचारी अधिनायक हो जाएंगे। बिहार की जनता को चाहिए कि वह भ्रष्टाचार के विरूद्ध सड़कों पर उतरे। देश के डीएनए में कमजोर पड़ रही ईमानदारी को बल देने के लिए ईमानदारों को सशक्त प्रयोग करने होंगे। ईमानदार वर्ग को चाहिए कि वह भ्रष्टाचारियों के साथ आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो। धर्म की सदैव जीत होती आई। अत: राज्यपाल को चाहिए कि भ्रष्टाचारियों के चंगुल में फंसी सरकार का पुनर्गठन करवाएं एवं योग्य लोगों को सरकार में अधिमान दें।
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