तेरे मकान का एक कंकर लाख रुपये में भी नहीं देंगे

shah mastana ji
शाह मस्ताना जी महाराज

Shah Mastana Ji Maharaj: पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज डेरे में नीम के वृक्ष के नीचे, पानी से भरे टब में स्नान कर रहे थे। वहीं पास ही लालपुरा गांव का प्रेमी ख्याली राम मकानों की नींव के पास मिट्टी दबाने की सेवा में लगा हुआ था। स्नान करते करते पूजनीय बेपरवाह जी ने ख्याली राम को ईलाही वचन फरमाया, ‘‘सरदार हरबंस सिंह (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का पहले वाला नाम) के अंदर प्रेम बादशाह आ गया है, उसको दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।’’ Shah Mastana Ji

फिर पूजनीय शाह मस्ताना जी ने आपजी के पास संदेश भेजा कि हरबंस सिंह अपना मकान तोड़कर घर का सारा सामान डेरे में लेकर आ जाए। आप जी तो पहली बार ही दर्शन करते ही अपने प्यारे सतगुरू पर तन मन से न्यौछावर हो चुके थे। आप जी को जैसे ही अपने सतगुरू जी का फरमान प्राप्त हुआ, आप जी ने बिना देरी किए, तत्काल ही कुदाल व गंधाला उठाया और ‘धन धन सतगुरू तेरा ही आसरा’ का नारा लगाकर अपना मकान अपने हाथों से तोड़ना शुरू कर दिया।

इस काम में आप जी के पूजनीय माता जी ने जी आप जी का साथ देते हुए कहा कि साईं जी के किसी भी हुक्म को नहीं मोड़ना। जैसा भी वह कहें, वैसा ही करना है। पूजनीय माता जी भी आप जी के साथ मकान तोड़ने लग गए। उसी दौरान एक प्रेमी ने आकर आप जी को सतगुरू जी का वचन सुनाते हुए कहा कि एक कमरे व एक बैठक को नहीं तोड़ना है, परिवार कहां बैठेगा और कहां सोएगा? Shah Mastana Ji

इधर आप जी अपने सतगुरू प्यारे की कृपा व खुशी प्राप्त करने के लिए उनके आदेश से खुशी-खुशी अपना मकान तोड़ रहे थे, परंतु दूसरी तरफ गांव श्री जलालआणा साहिब का हर व्यक्ति दु:खी व उदास था क्योंकि प्रत्येक गांववासी आप जी से अत्याधिक स्नेह करता था। संभवत: गांववासी यही सोच रहे होंगे कि यह कैसी गुरू भक्ति है, यह कैसी फकीरी है? एक बड़ा कमरा तथा एक बैठक को छोड़कर आप जी द्वारा अपना सारा मकान तोड़ कर गिरा दिया गया। पूजनीय सतगुरू जी का यह अनोखा खेल कई दिनों तक चलता रहा।

लोग इस घटना को देखकर व सुनकर आश्चर्यचकित रह जाते तथा मन ही मन विचार करते कि आप जी को क्या हो गया है? आप अपना मकान क्यों तोड़ रहे हैं? उन बेचारे गांव वालों को प्यारे सतगुरू जी के रहस्य का क्या पता था? इस प्रकार आप जी घर का सामान रेडियो, घड़ी, पानी वाली टंकी, गाड़ी, कपड़ों से भरी पेटियां, संदूक, बिस्तर, मोटरसाईकिल, फर्नीचर तथा जो भी अन्य सामान घर में मौजूद था, उसे ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में भरकर डेरा सच्चा सौदा, सरसा में ले आए।

उस समय नई ईटों का भाव 28 रूपये प्रति हजार था परंतु ट्रक वाले गांव श्री जलालआणा साहिब से सरसा तक ईंटों की ढुलाई का किराया 20 रूपये प्रति हजार मांग रहे थे। इसलिए आप जी ने पूजनीय बेपरवाह जी के चरणों में विनती की, ‘‘साईं जी! यदि आपका हुक्म हो तो पुरानी ईटें इसी गांव को दे देते हैं और यहां नई ईंटें मंगवा लेते हैं।’’ इस पर पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने वचन फरमाया, ‘‘नहीं भई! Shah Mastana Ji

नहीं, तेरे मकान का तो एक-एक कंकर, एक-एक लाख रूपये में भी किसी को नहीं दिया जाएगा। सभी ईंटें यहां दरबार में उठा लाओ।’’ इस तरह अपने प्यारे सतगुरू के आदेश को सर्वाेपरि मानते हुए आप जी अपने मकान का सारा मलबा ईंटें, गार्डर तथा लकड़ी के बड़े-बड़े शहतीर आदि सब कुछ ट्रकों, ट्रॉलियों में भरकर डेरा सच्चा सौदा, सरसा में ले आए।

नाम शब्द देने के वचन | Shah Mastana Ji

दिनांक 16 अप्रैैल 1960 को रात्रि के लगभग सवा बारह बजे पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज ने जीप से दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। उस समय उनके साथ पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज, चालक हजारा लाल, गोबिन्द मदान, प्रेमी बुल्ला तथा कुछ अन्य सेवादार थे। उस समय पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज बातों बातों में अपने निजघर जाने का संकेत कर रहे थे, किन्तु पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के अलावा उनकी इन बातों का रहस्य कोई समझ नहीं पाया।

दिनांक 17 अप्रैल को साध-संगत के साथ दिल्ली के कुछ स्थानों सफदरजंग, निजामुद्दीन औलिया की कब्र देखने गए एवं रात्रि के समय दिल्ली में सत्संग भी किया। उस समय कुछ लोगों द्वारा नामदान हेतु प्रार्थना करने पर शाह मस्ताना जी ने स्पष्ट शब्दों में फरमाया, ‘‘अब हम नाम शब्द शाह सतनाम सिंह जी के रूप में देंगे।’’ Shah Mastana Ji