सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान जब तक मालिक का नाम नहीं जपता, उसकी मनोइंद्रियां उसके काबू में नहीं आती। जब तक मनोइंद्रियां फैलाव में हैं, सतगुरु, मौला पर यकीन नहीं आता और जब गुरु, सतगुरु पर यकीन नहीं है, तो अल्लाह, वाहेगुरु, राम के दर्श-दीदार का सवाल ही नहीं उठता। दुनियावी तौर पर जब कोई काम सीखाता है तो सीखने वाले में लग्न होनी चाहिए और उससे भी जरूरी है कि उसे अपने उस्ताद पर पूर्ण यकीन हो। यही बात रूहानियत में है।
आप जी फरमाते हैं कि गुरु यह नहीं कहते कि मेरे पांव दबाओ, मेरे लिए कुछ अलग से लेकर आओ। गुरु, संत, पीर-फकीर एक ही बात कहते हैं कि सुबह-सवेरे नाम का जपा करो, सुमिरन किया करो, रात को सुमिरन करो और तन-मन-धन से दीन-दुखियों की मदद करो। आप किसी भी जरूरतमंद की मदद करते हैं, यानी कोई बीमार है, भूखा-प्यासा है, आर्थिक रूप से कमजोर है, आप उसकी मदद करते हैं, तो गुरु यह कहते हैं कि अगर आप ऐसा करते हैं तो भगवान आपकी, आपके परिवारों की ही नहीं, बल्कि आपकी कुलों तक की मदद करेगा। इन्सान की औलाद का अगर कोई भला कर दे, तो वो मां-बाप उसका भला करने वाले इन्सान को दुआएं देने लगते हैं, तो एक दुनियावी इन्सान अपनी औलाद का भला करने वाले के लिए इतनी दुआएं करेगा, तो भगवान क्या आदमी से कम है? जो मालिक की औलाद का भला करेगा, तो भगवान भी कमी नहीं छोड़ता।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि वेद-शास्त्रों में लिखा है कि मानस मजदूरी देता है। दुकान पर काम करवाए, खेतों में काम करवाए, कम्पनी में काम करवाए, तो मालिक उन्हें उनकी मजदूरी देता है। तो अगर कोई मालिक को टाईम दे, तो क्या भगवान कुछ छुपा कर रखेंगे? क्या भगवान आदमी से कमजोर है। भगवान ने तो सारी त्रिलोकियां बनाई हैं। इसलिए वो कुछ छुपा कर नहीं रखेंगे, बल्कि वो दया-मेहर, रहमत से लबरेज कर देंगे, मालामाल कर देंगे।
आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को मन के या किसी अन्य आदमी के कहने से सुमिरन करना नहीं छोड़ना चाहिए। ठीक है, आपका मन किसी बात को नहीं मानता तो सुमिरन कर इससे मन काबू में आ जाएगा। कोई कुछ कहता रहे, कौन कैसा है, इससे आपने क्या लेना है। आप सुमिरन करते रहो, बस। इससे आपके बुरे कर्म कटते जाएंगे। इसलिए सुमिरन करना, सत्संग सुनना जरूरी है। इन्सान कहता है सुमिरन करना है, तो फिर सत्संग करना क्यों जरूरी है? दुनिया में रहता हुआ इन्सान दुनियादारी में इतना खो जाता है, उसी का हो जाता है और मालिक से दूर हो जाता है। उसे मालिक की भूली-बिसरी सी याद आती रहती है, लेकिन बात नहीं बनती। जब आप सत्संग सुनेंगे, रोजाना मजलिस में आएंगे, या जब भी आपको समय मिले, तो उससे आपकी लीव फिर से वहीं लगेगी और मालिक से रूहानी रिश्ता याद आता है, खुशियां बेइन्तहा बढ़ जाएंगी। इसके अलावा, जैसे आप सुमिरन कम कर पाते हैं, तो अगर आप सत्संग में आते हैं, तो सत्संग से बना-बनाया सुमिरन ले जाते हैं और फिर सुमिरन में मन जल्दी लगता है। परन्तु बात वचनों पर अमल करने की है।
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