अनमोल वचन: सेवा-परमार्थ के द्वारा मन से बचो

सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि आज का इन्सान पशु से बढ़कर शैतानियत पर उतर आया है। सोचते, बोलते, सोते-जागते, हर समय बुराइयों का बोलबाला बना रहता है। जब जीव सत्संग में आता है, मालिक की बात सुनता है तो उसे पता चलता है कि मैं क्या कर्म कर रहा था और मुझे क्या करना चाहिए। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि इस घोर कलियुग में इन्सान नादान बना रहता है। सब कुछ जानते हुए भी काल के चक्रव्यूह में बुरी तरह से उलझा हुआ है। मालिक का नाम लेकर सेवा-परमार्थ के द्वारा इस चक्रव्यूह से बचा जा सकता है, लेकिन इन्सान मन के अलावा किसी ओर ध्यान नहीं देता।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि मन की न सुनो। यह सेवा नहीं करने देता और मालिक की दयालुता को कमजोरी समझता है। उसकी प्यार-मोहब्बत को मान-बड़ाई और मक्खनबाजी समझता है। ऐसे लोग सुमिरन करेंगे तो मन काबू आएगा, वरना यह जीवन को नरक बना देता है। आप जी ने फरमाया कि संत, सतगुरु, पीर-फकीर जीव को बहुत समझाते हैं, पर जीव मन के हाथों इतना मजबूर हो जाता है कि उसे अपने अच्छे-बुरे का कुछ भी पता नहीं चलता और लोग बुरे कर्म करते चले जाते हैं, फिर मालिक से बेइन्तहा दूर हो जाते हैं। इस लिए इन्सान को बुरा कर्म नहीं करना चाहिए। अच्छे-नेक कर्म करो, सबका भला करो, मालिक का नाम जपो, क्योंकि अगर आप मालिक की औलाद का भला करते हैं, तो मालिक आपका भला जरूर करेंगे।

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