उन्हीं दिनों की बात है एक बार पूजनीय परम पिता जी श्री जलालआणा साहिब में तेरावास के चौबारे में विराजमान थे। एक सेवादार भी पूजनीय परम पिता जी के पास खड़ा था। पूजनीय परम पिता जी ने सेवादार को फरमाया, ‘‘बेटा! संगत बहुत है, अपने पास प्रसाद भी बहुत है। सेबों को काटकर इन्हें टोकरों में भर लो।’’ सेवादारों ने वैसा ही किया तथा टोकरे सीढ़ियों पर रख लिये। पूजनीय परम पिता जी ने सेवादारों से कहा, ‘‘संगत से बोेलो कि बारी-बारी आओ और सेब की एक-एक फाड़ी उठाकर ले जाओ।’’ साध-संगत ने वैसा ही किया। तब पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा! अब कहो कि दो-दो फाड़ियां उठाओ।’’ साध-संगत ने दो-दो फाड़ियां उठा लीं। पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा! अभी भी प्रसाद बचा हुआ है, साध-संगत को कहो कि बारी-बारी आओ और तीन-तीन फाड़ियां उठा लो।’’ साध-संगत ने तीसरी बार तीन-तीन फाड़ियां उठा लीं। पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा! प्रसाद तो अभी भी बच गया है।’’ फिर पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा! ये खत्म नहीं होगा, रहने देते हैं।’’ यह अद्भुत करिश्मा देखकर सभी हैरान थे और मालिक का धन्यवाद कर रहे थे।
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