व्यवहारिक एवं स्थायी किस्म का हो विकास

Development

अमृतसर में हुई भारी वर्षा से शहर की सड़कें नहरें बन गई, जिससे प्रशासन के लिए मुश्कि लें खड़ी हो गर्इं। एक जगह एक कार पानी में तैरती भी दिखाई दी। शहर में बाढ़ जैसे हालात हैं। इससे पहले बठिंडा शहर बदतर निकासी प्रबंधों के कारण चर्चा में है। जब राजनीतिक तथा एतिहासिक पक्ष से महत्वपूर्ण शहरों की हालत बदतर हैै तब कस्बों नगरों का कौन है? वास्तव में यह बेढंगे तथा जल्दबाजी में किये गए विकास का परिणाम है। चुनावों या किसी सरकारी कार्यक्रम को निपटाने के लिए रातों रात सड़कें बनाने या सीवरेज बिछाने की खबरें आम रह चुकी हैं। उच्च अधिकारियों के ‘जल्दी करवाओ-जल्दी करवाओ’ वाले फोनों के कारण सही ढंग से काम करने के सभी मापदंड ताक पर रखकर सारा जोर इस बात पर लग जाता है कि कैसे ना कैसे समय से पहले काम निपटा दिया जाए। यही कारण है कि जल्दी में बनाई गई सड़कें कुछ दिनों बाद ही टूटनी शुरू हो जाती हैं।

आज सभी शहरों के लोग ही अव्यवस्थित विकास कार्यों का खामियाजा भुगत रहे हैं। वास्तव में विकास कार्यों के लिए बढ़ रही आबादी, मौसम में हो रहे बदलाव सहित बहुत से पक्षों पर विचार करना पड़ता है, लेकिन राजनैतिक हितों के लिए ऐसे पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है। यह वास्तविकता है कि पहले सड़कें धड़ाधड़ बना दी जाती हैं फिर सीवरेज बनाने के लिए सड़कों को फिर से तोड़ा जाता है। सरकार व राजनीतिक क्षेत्र में वैज्ञानिक नजरिये को बुरी तरह दर-किनार किया जाता है। किसी योजना को स्थाई ढंग से बनाया या पूरा नहीं किया जाता। पांच दस साल बाद प्रोजेक्ट छोटे पड़ जाते हैं, नए सिरे से तोड़फोड़ व फिर से निर्माण शुरू किया जाता है, जो यहां देश के धन की बर्बादी व परेशानियां देने वाला होता है। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि सड़कों, सीवरेज व आधारभूत ढांचे से संबंधित कोई भी इंजीनियरिंग व व्यवहारिक मापदंडों के आधार पर ही कार्य किया जाए। सुविधाओं के नाम पर खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए। खानापूर्ति आम जनता के साथ धोखा व प्रदेश व देश की बर्बादी है।

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।