देशे की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठजोड (एनडीए) सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हल्फनामा देकर स्पष्ट कर दिया है कि सरकार दो से अधिक बच्चों के जन्म पर पाबंदी नहीं लगाएगी। भले ही सरकार के इस निर्णय से कुछ इस्लामिक संगठन चिंतामुक्त हो गए हैं, लेकिन बढ़ रही जनसंख्या को स्व-इच्छा से नियंत्रण करने की मुहिम को जारी रखना होगा। एनडीए 2.0 सरकार आने पर इस बात की चर्चा थी कि सरकार दो बच्चों से अधिक के जन्म पर पाबंदी लगाएगी। तीन तलाक और धारा 370 हटाने जैसे निर्णय के बाद जनसंख्या नियंत्रित को सरकार का अगला एजेंडा माना जा रहा था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के इस तरह के बयान चर्चा में रहे थे। यूं भी कुछ कांग्रेसी नेता और मुस्लिम नेता भी दो बच्चों के कानून के समर्थन में हैं, लेकिन यह 21वीं सदी का समय है, अब मुस्लिम धर्म के नाम पर देश की जनसंख्या को घटाने या बढ़ाने का समय नहीं रहा।
तकनीक व विकास के युग में जनसंख्या नियंत्रण को कानून बनाने की बजाय, इसे स्व-इच्छा आधारित समझा जाए, साथ ही बढ़ रही जनसंख्या से समस्याओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। स्व-इच्छा से परिवार नियोजन अभियान को बल देने की आवश्यकता है। यूं भी हमारे संविधान में नागरिक शब्द का प्रयोग है न कि हिंदू, सिख, मुस्लमान लिखा गया है, लेकिन सांप्रदायिक संगठनों के नेता आज भी लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने या कम से कम चार बच्चे पैदा करने का प्रचार कर रहे हैं, जो किसी भी तरह से देशहित में नहीं है। यहां सरकार के लिए नई चुनौती यह भी खड़ी हुई है कि सरकार जनसंख्या बढ़ाने वालों के प्रचार से निपटने के लिए कौन सा कानूनी आधार बनाएगी?
वास्तव में जागरूकता ही सबसे बड़ा समाधान है, जिससे लोगों को बढ़ रही जनसंख्या की समस्या से अवगत करवाया जा सकता है। चीन आज ज्यादा अधिक जनसंख्या होने के कारण कई समस्याओं का सामना कर रहा है। बढ़ती जनसंख्या भोजना, आवास, पेयजल, स्वास्थ्य परिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा बन रही है। आज हमारे देश में भी बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं की कमी और बढ़ रहे अपराध जैसी समस्याओं की जड़, बढ़ रही जनसंख्या को बताया जाता है। इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार द्वारा दो बच्चों से अधिक पर पाबंदी न लगाने की घोषणा से सरकार की जिम्मेवारियों में भारी वृद्धि होगी।
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