अपनी कथनी और करनी में अंतर और धोखेबाज चीन पांच दशकों बाद भी वास्तविक्ता, इंसानियत और नैतिकता जैसे मूल्यों से बिल्कुल कोरा है। भारत अभी सीडीएस बिपिन रावत और अन्य सैन्य अधिकारियों की विमान क्रैश दुर्घटना में हुई मौत से उभरा ही नहीं कि चीन के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइमज ने भारत के जख्मों पर नमक छिड़क दिया है। जब पाकिस्तान जैसे देश की सेना के उच्च अधिकारी सीडीएस रावत की मौत पर दुख और परिवार के साथ सांत्वना व्यक्त कर रहे थे तब चीन वायु सेना के हादसे का जिक्र कर भारत की रक्षा खामियों पर तंज कस रहा था। चीनी समाचार पत्र ने भारत को सैन्य ताकत के रूप में अभी पिछले दौर में ही बताया है। इसके साथ ही भारतीय सेना को अनुशासहीन भी करार दिया। ऐसी शब्दावली विरोध और द्वेष भावना का प्रमाण तो है ही, बल्कि चीनी मीडिया की बीमार मानसिकता और इंसानियत जैसे मूल्य न के बराबर होने का भी प्रमाण है।
जिस तरह की भाषा का चीनी समाचार-पत्र ने इस्तेमाल किया है वह किसी सैन्य अभ्यास या युद्ध के दौरान तो उचित कही जा सकती है लेकिन एक हादसे में हुई कई मौतों पर खिल्ली उड़ाना शैतानियत की श्रेणी में आता है। सरकार प्रायोजित चीनी मीडिया की घटिया हरकत चीनी प्रशासन की नीतियों और नीयत को उजागर करती है। दुख में पड़ोसी से हमदर्दी की उम्मीद होती है। चीनी मीडिया की कार्रवाई इंसानियत से गिरी हुई है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि शहीदों के सम्मान की कीमत चीन को पाकिस्तान से ही सीख लेनी चाहिए। चीनी मीडिया और प्रशासन का रवैया 1962 से लेकर गलवान घाटी में हुई घटनाओं तक चीन की मक्कारी, अविश्वास और धोखेबाजी की हरकतों की पुष्टि करता है। दुख में शामिल होने से शत्रुता कमजोर पड़ती है लेकिन चीन का रवैया न तो सामाजिक है न ही मानवीय। भाई-भाई नहीं तो पड़ोसी बने रहने की ही परम्परा सीख लेनी चाहिए।
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