प्रेमी गुरसेवक सिंह इन्सां, सुपुत्र श्री हरनेक सिंह प्रीत नगर, गली नं. 12, सरसा (हरियाणा) प्रेमी जी अपने सतगुरू (Poojya Hazoor Pita ji) कुल मालिक पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की उपरोक्त अनुसार अपार रहमत का प्रत्यक्ष करिश्मा इस प्रकार लिखित में बताता है:-
प्रेमी गुरसेवक सिंह इन्सां ने बताया कि साल 2002 की बात है, उन दिनों में मेरा बड़ा लड़का गुरप्रीत सिंह यूकेजी कक्षा में पढ़ता था। उस समय वह करीब 6 वर्ष का था। एक दिन बाहर पक्की सड़क पर उसका एक तेज रफ्तार स्कूटर के साथ एक्सीडैंट हो गया। स्कूटर तेज गति में था, जोरदार टक्कर लगी, बच्चे को सड़क पर पटक दिया। उसके सिर में जबरदस्त चोट लगी, सिर फट गया। बच्चा बेहोश हो गया। इसके साथ ही उसे लकवा (अधरंग) का भी जबरदस्त अटैक हो गया।
बहुत ही नाजुक स्थिति में हमने उस लुधियाना के एक प्राईवेट अस्पताल में दाखिल करवा दिया। डॉक्टरों ने बच्चे की हालत को देखते ही ना -उम्मीदी बताई कि फैसला इसकी किस्मत पर है। वैसे भी 24 घंटे से पहले कुछ भी नहीं कहा जा सकता। डॉक्टरों ने यह भी कहा कि अगर बच्चा बच भी गया तो मान लो एक-दो प्रसेंट, तो इसके दिमाग का आॅपरेशन करना पड़ेगा। हमने उन्हें कह दिया कि आॅपरेशन आप अभी कर दीजिए। वो कहने लगे कि बच्चे के बचने की उम्मीद बहुत ही कम है, आप पैसा क्यों बर्बाद करते हैं।
अपने बच्चे की उस नाजुक स्थिति और डॉक्टरों द्वारा ना-उम्मीदी प्रकट करने पर हमारा हौसला भी टूट गया था। अपने सतगुरू मुर्शिद प्यारे का सहारा ताकते अर्थात् अपने सतगुरू दाता (Poojya Hazoor Pita ji) से रहमत मांगते हुए हमनें वहीं से डेरा सच्चा सौदा सरसा में फोन मिलाया । फोन सत् ब्रह्मचारी सेवादार भाई मोहन लाल ने अटैंड किया। उस समय पूज्य हजूर पिता जी शाह मस्ताना जी धाम में रूहानी मजलिस में विराजमान थे। हमनें भाई मोहन लाल इन्सां को अपना नाम पता बताते हुए बच्चे के एक्सीडेंट और नाजुक स्थिति के बारे में विस्तार से बताया और जो कुछ डॉक्टर साहिबानों ने कहा था, वह भी सब कुछ बता दिया कि पूज्य गुरू जी ही बच्चे को जिंदगी बख्शें तो बख्शें, नहीं तो बच्चा तो गया।
उसके बचने की उम्मीद जरा भी नहीं है। बाई मोहन लाल जी ने हमें धैये बनाए रखने के लिए कहा, हौंसला दिया कि पूज्य पिता जी से अभी जाकर सारी बात अर्ज करता हूं और पूज्य शहनशाह जी जो वचन करेंगे, फोन पर बता दूंगा। थोड़े समय बाद ही ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ा, बाई जी ने फोन पर पूज्य सतगुरू सच्चे दाता पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के वचन ज्यों के त्यों हमें बता दिए कि पूज्य पिता जी ने वचन किए हैं कि ‘बच्चे का दोबारा जन्म हुआ है।’ पूज्य पिता जी ने यह भी वचन किए हैं कि ‘जब डॉक्टर आॅपरेशन करने लगें तो परिवार वालों ने सभी ने सुमिरन करना है और परिवार का एक मैंबर तो वहां पास बैठकर एकाग्रचित होकर लगातार सुमिरन करता ही रहे।’
पूज्य दयालु दाता, हमारे सच्चे रहबर ने हमारे बच्चे की जान बख्श दी है, इसी हौंसले पर हमनें डॉक्टर साहिब को तुरंत आॅपरेशन करने के लिए राजी कर (मना) लिया। बच्चा आॅपरेशन थियेटर में था और हम सारा परिवार पूज्य मुर्शिदे कामिल के पावन वचनानुसार सुमिरन कर रहे थे। डॉक्टरों ने बताया कि आॅपरेशन सफल रहा। बच्चे के सिर की हड्डी टूटकर दिमाग में घुस गई थी, उसे सही स्थान पर तारों आदि से सैट कर दिया है और दूसरा यह कि सड़क की बजरी (एक दाना) भी उसके दिमाग में घुस गई थी, उसे भी निकाल दिया है।
डॉक्टरों ने कहा कि जो कुछ भी हमारे हाथ में था, और हम जो भी कर सकते थे, हमनें पूरी ईमानदारी से प्रयास किया है, अब आगे बच्चे की किस्मत भगवान के हाथ है, परमात्मा से अरदास कीजिए। हमें तो मालिक की कृपा से अंदर से पूरा हौंसला था और दृढ़ विश्वास अपने सतगुरू पर कि मेरे सतगुरू शहनशाह जी ने हमारे बच्चे को दोबारा जन्म प्रदान किया है। आॅपरेशन के पांच दिन बाद बच्चे को थोड़ा होश आया। उपरांत उसकी आॅक्सीजन उतार दी गई। जिस तरह नवजात शिशु जन्म लेने के बाद रोता है ना, ठीक उसी तरह होश में आने के बाद हमारा बच्चा रोया। वह उस समय आईसीयू में था। हम भागकर आईसीयू में गए।
डॉक्टरों और नर्सों ने हमें बधाईयां दी, ठीक उसी प्रकार जैसे बेटे के जन्म पर चारों तरफ से बधाईयां मिलती हैं। डॉक्टरों ने भी हमें यह कहा कि बच्चे का दोबारा जन्म हुआ है। ग्यारह दिन के बाद बच्चे को छुट्टी मिल गई और हम घर पर आ गए। हम बच्चे को डेरा सच्चा सौदा दरबार में ले गए। पूज्य पिता जी ने बच्चे को दोबारा जन्म बख्शा है, प्यारे सतगुरू जी का हमनें शुक्रिया अदा किया। पूज्य पिता जी के पावन वचनानुसार बच्चे को बीमारी वाला प्रसाद दिया गया। प्रसाद बूंदी का था, जबकि तब तक बच्चे को तरल पदार्थ दूध, ज्यूस इत्यादि खुराक पाईप के द्वारा दिया जा रहा था।
नवजात शिशु की तरह मुंह के द्वारा खाना पीना वह नहीं जान पाया था। हमनें प्रसाद बूंदी का पहले एक दाना उसके मुंह से लगाया कि पता नहीं खाएगा या नहीं। परंतु प्यारे सतगुरु दाता जी की रहमत का प्रत्यक्ष कमाल कि बच्चा प्रसाद का वह दाना धीरे-धीरे चबाने लगा और यह देखकर हमें और भी बहुत ज्यादा खुशी हुई कि घर पहुंचते-पहुंचते पूज्य पिता जी द्वारा दिया गया सारा प्रसाद बच्चे ने अच्छी तरह चबाकर खा लिया और इस तरह कुछ दिनों के बाद खुराक वाली वह पाईप भी डॉक्टरों ने उतार दी। बिल्कुल नवजात शिशु की तरह हमनें उसे बैठना सिखाया।
कुछ महीनों बाद वह अपने आप चारपाई से नीचे उतरने लगा, अपने आप धीरे-धीरे घुटनों बल रिढ़ने लगा। कभी चारपाई को पकड़कर खड़ा हो जाता तो कभी उसकी के सहारे कदम, दो कदम चल भी लेता। कभी-कभी हम भी उसके हाथ के सहारे से दो-चार कदम चलाते। लगभग एक साल के बाद बच्चे ने धीरे-धीरे मम्मी-पापा बोलना शुरू कर दिया और प्यारे सतगुरू दाता पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां मेरे सच्चे दाता रहबर की हम पर ऐसी रहमत हुई।
सच्चे परवरदिगार पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां मेरे मालिक ने मेरे बच्चे पर, हमारे पूरे परिवार पर अपनी दया-मेहर रहमत भरा हाथ रखा, हमारे बच्चे को मौत के मुंह में से निकालकर पूज्य पिता जी ने दोबारा नया जन्म दिया है। इससे बड़ा मालिक का करिश्मा और क्या हो सकता है, पूज्य पिता जी ने बिल्कुल हथेली पर सरसों जमा कर दिखा दी। हमारा बच्चा सही सलामत हमें लौटा दिया। हमारा एक-एक स्वास अपने सतगुरू और राम-नाम की सेवा में लग जाए, हम हमेशा अपने मुर्शिद के दर से जुड़ रहें, यही अपने दाता प्यारे की हजूरी में हमारी यही अरदास है।