दिल्ली इन दिनों जिस जानलेवा वायु प्रदूषण की शिकार है, लोग अपने घरों तक में सुरक्षित नहीं है। जल निकासी की माकूल व्यवस्था न होना शहर में जल भराव का स्थायी कारण बनता रहा है, वह भी जानलेवा होकर। शहर के लिए सड़क चाहिए, बिजली चाहिए, जल चाहिए, मकान चाहिए और दफ्तर चाहिए। इन सबके लिए या तो खेत होम हो रहे हैं या फिर जंगल। जंगल को हजम करने की चाल में पेड़, जंगली जानवर, पारंपरिक जल स्रोत सभी कुछ नष्ट हो रहा है। यह वह नुकसान है जिसका हर्जाना संभव नहीं है और यही वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है।
ललित गर्ग
राजधानी दिल्ली में अक्सर वायु एवं जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में खड़ा रहता है, लेकिन इस गंभीर समस्या का दिल्ली विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा न बनना, विडम्बनापूर्ण है। असल में देखें तो संकट वायु प्रदूषण का हो या फिर स्वच्छ जल का, इनके मूल में विकास की अवधारणा के साथ-साथ राजनीतिक दलों की भ्रांत नीतियां एवं सोच है, यही कारण है इन चुनावों में तीनों ही प्रमुख दल चाहे भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी इस मुद्दे पर मौन धारण किये हुए है। हर समय वायु प्रदूषण की चपेट में रहने वाली दिल्ली इस विकराल होती समस्या का समाधान चाहती है। क्योंकि वायु प्रदूषण दिल्ली के लोगों के स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा बन चुकी है, मनुष्य की सांसें उलझती जा रही है, जीवन पर संकट मंडरा रहा है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि एकदम अनियंत्रित होती स्थिति के बावजूद सत्ता के आकांक्षी तीनों ही दल कोई समाधानमूलक वायदा नहीं करते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं।
तीनों ही दल किसी तरह दिल्ली की सत्ता हासिल करना चाहता है। चुनाव जीतने के लिए जहां राजनीतिक दल हिन्दू-मुसलमान की राष्ट्र तोड़ने की बहसों में जनता को उलझाए रखना चाहते हैं, लेकिन वे वायु-जल प्रदूषण जैसी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, समाधान की कोई रोशनी नहीं दिखा रहे हैं। अब आम जनता भी इन बहसों से ऊब चुकी है और इस चुनाव में अपने असली जीवन रक्षक मुद्दों पर बात करना चाहती है। दिल्ली के हजारों नागरिकों ने आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों से स्वच्छ वायु के लिए ठोस समाधान की मांग की है। शुद्ध सांसें मेरा अधिकार है की भावना के साथ एक नागरिक आांदोलन ‘दिल्ली धड़कने दो’ पिछले दिनों शुरू हुआ है, जो मतदाताओं को मुखर होकर वायु प्रदूषण के समाधानों के प्रति अपने जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाने के लिये प्रतिबद्ध है। निश्चित ही यह आन्दोलन सही समय पर शुरू हुआ है, लेकिन चुनाव में खड़े उम्मीदवार एवं उनके राजनीतिक दल फिर भी इस बड़ी समस्या के लिये कोई ठोस आश्वासन देने एवं इसे चुनावी मुद्दों बनाने को तत्पर दिखाई नहीं दे रहे हैं। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में वायु एवं जल प्रदूषण ही जीत-हार का माध्यम बनना चाहिए। क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। हालांकि वायु प्रदूषण पूरी दुनिया, खासकर तीसरी दुनिया के देशों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य पर पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 93 प्रतिशत बच्चे प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। पांच साल से कम उम्र के 10 बच्चों की मौत में से एक बच्चे की मौत प्रदूषित हवा की वजह से हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य पर जारी इस रिपोर्ट के अनुसार 2016 में, वायु प्रदूषण से होने वाले श्वसन संबंधी बीमारियों की वजह से दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के 5.4 लाख बच्चों की मौत हुई है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में बीमारियों को बढ़ावा देने और असमय मौतों के लिए वायु प्रदूषण को तंबाकू उपभोग से भी अधिक जिम्मेदार पाया गया है। विश्व की 18 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है, जिसमें से 26 प्रतिशत लोग वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न बीमारियों और मौत का असमय शिकार बन रहे हैं।
दिल्ली इन दिनों जिस जानलेवा वायु प्रदूषण की शिकार है, लोग अपने घरों तक में सुरक्षित नहीं है। जल निकासी की माकूल व्यवस्था न होना शहर में जल भराव का स्थायी कारण बनता रहा है, वह भी जानलेवा होकर। शहर के लिए सड़क चाहिए, बिजली चाहिए, जल चाहिए, मकान चाहिए और दफ्तर चाहिए। इन सबके लिए या तो खेत होम हो रहे हैं या फिर जंगल। जंगल को हजम करने की चाल में पेड़, जंगली जानवर, पारंपरिक जल स्रोत सभी कुछ नष्ट हो रहा है। यह वह नुकसान है जिसका हर्जाना संभव नहीं है और यही वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है। इन चुनावों में वायु प्रदूषण की रोकथाम से संबंधित दिल्ली की मांग पर अमल करने वाले दल को ही मतदाता विजयी बनाए और इस विकराल समस्या से निजात दिलाने के लिए इलेक्ट्रिक रिक्शा के बड़े पैमाने पर चलन, चार्जिंग इंफ्रास्टक्चर को बढ़ाने और सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित करने की योजना को लागू करने वाले दल को ही एक मौका दिया जाना चाहिए।
वायु प्रदूषण की हर वर्ष विकराल होती समस्या के समाधान की दिशा में एक लंबा रास्ता तय करना है। स्वच्छ वायु पाने के लिए हमें ईंधन खपत के अपने तरीके में व्यापक बदलाव करने होंगे। कोयले के इस्तेमाल को पूरी तरह से बंद करना होगा। हमें इलेक्ट्रिक रिक्शा-बसों, मेट्रो, साइकिल ट्रैक और पैदल पथ में निवेश करके सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या में कमी करना होगा। प्रदूषण फैलाने वाले पुराने वाहनों को उपयोग से हटाना होगा, लेकिन इन उपायों का तब तक ज्यादा लाभ नहीं होगा, जब तक कि हम प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों पर लगाम नहीं लगाते। हमें कचरा-कूड़ा जलाने, धूल फैलाने और खाना बनाते समय अनावश्यक धुआं पैदा करने की आदत छोड़नी पड़ेगी।
दीपावली जैसे अवसरों पर आतिशबाजी पर कठोरता से अंकुश लगाना होगा। कचरा कहीं फेंक देना या जला देना समाधान नहीं है। पॉलीथीन, घर-कारखानों से निकलने वाले रसायन और नष्ट न होने वाले कचरे की बढ़ती मात्रा, कुछ ऐसे कारण है जो कि शुद्ध वायु के दुश्मन है। दिल्ली में सीवर और नालों की सफाई भ्रष्टाचार का बड़ा माध्यम है। यह कार्य किसी जिम्मेदार एजेंसी को सौंपना आवश्यक है वरना आने वाले दिनों में दिल्ली में कई-कई दिनों तक पानी भरने की समस्या उपजेगी जो यातायात के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा होगा। केवल पर्यावरण प्रदूषण ही नहीं, दिल्ली सामाजिक और सांस्कृतिक प्रदूषण की भी गंभीर समस्या उपजा रहे हैं। लोग अपनों से, मानवीय संवेदनाओं से, अपनी लोक परंपराओं व मान्यताओं से कट रहे हैं। जिसके कारण परम्परा एवं संस्कृति में व्याप्त पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण के जीवन सूत्रों से हम दूर होते जा रहे हैं, ऐसे कारणों का लगातार बढ़ना ही दिल्ली जैसे महानगरों की वायु प्रदूषण और ऐसे ही पर्यावरण प्रदूषण के नये-नये खतरों को इजाद कर रहा है।
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