हिमाचल के रोहतांग में ‘अटल सुरंग’ के उद्घाटन के साथ पहाड़ी लोगों के साथ-साथ व्यापारियों और पर्यटकों को लाभ मिलेगा। विकास की रफ्तार के लिए ऐसी परियोजनाओं की अति आवश्यकता है। भारतीय इंजीनियरों ने विश्व के सबसे ऊंचे स्थान पर सबसे लम्बी सुरंग बनाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। नौ किलोमीटर के करीब लंबी इस सुरंग को बनाने के लिए दस साल का समय लगा। अटल सुरंग के साथ मनाली और लेह का रास्ता करीब 46 किलोमीटर कम हो गया, जिससे धन व समय की बचत होगी। यात्रा भी आसान होगी। व्यापारिक पक्ष से भी यह प्रोजैक्ट बेहद लाभकारी है। देश की रक्षा के लिए सैन्य उद्देश्यों से भी इस प्रोजैक्ट का महत्व बहुत ज्यादा है।
भले ही यह देश की बहुत बड़ी उपलब्धि है लेकिन आधुनिक तकनीक के मुताबिक और विकसित देशों के बराबर चलने के लिए ऐसे प्रोजेक्ट्स को तेजी से पूरा करने और अन्य प्रोजैक्ट जल्दी शुरू करने की आवश्यकता है। लेह-लद्दाख के लोग कई अन्य सुरंगों के निर्माण की मांग भी कर रहे हैं। बुनियादी ढांचा किसी भी देश के विकास के लिए पहली सीढ़ी है। इस मामले में राजनीतिक खींचतान छोड़कर सेवा और तत्परता की आवश्यकता है। अधिकतर प्रोजैकट राजनीतिक खींचतान के कारण देरी से पूरे हो पाते है। केंद्र व राज्य सरकारों को राजनीतिक हित किनारे कर विकास परियोजनाओं में रुकावट बनने की बजाय, तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है। पंजाब के नदियों वाले क्षेत्रों में पुलों की कमी के कारण अभी भी लोग नावों के द्वारा ट्रैक्टर नदी से पार लेकर जाते हैं।
नदियों पर पुल न होने के कारण लाखों किसानों को मुश्किलों, भारी खर्चों और खतरों का सामना करना पड़ता है। यदि पहाड़ी प्रदेशों और महानगरों में रास्ता कम करने के लिए बड़े प्रोजैक्ट बनाए जा सकते हैं तब ग्रामीण क्षेत्र को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। पता नहीं कितनी नहरें, सेमनालों की रेलिंग टूटने, सीवरेज व सड़कों के तंग पउÞ जाने जैसे कार्यों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। घग्गर नदी पंजाब-हरियाणा के लिए बाढ़ के कारण हर साल मुसीबत बनती है और हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो जाती है। सरकारी दावों के बावजूद यह प्रोजैक्ट पिछले दो दशकों से अधर में लटक रहा है। उम्मीद है कि केंद्र व राज्य सरकारें अन्य क्षेत्रों की मुश्किलों को भी दूर करेंगी।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।