कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने अपनी जिला कमेटियों से कहा है कि वह अपने यहां मजदूरों का किराया भरें, जिस पर बसपा, भाजपा सभी में यह श्रेय लेने की होड़ मच गई है कि वह प्रवासी मजदूरों का किराया वहन करेंगे। इस पूरे मामले में केन्द्र व राज्यों में आपसी समन्वय नहीं होने की तस्वीर साफ दिख रही है। पिछले 40 दिन से प्रवासी मजदूर सरकार से उन्हें घर पहुंचाने की गुहार लगा रहे थे, तभी यह साफ हो जाना चाहिए था कि मजदूरों को बिना किराये घर तक भेजा जाएगा व किराया सरकार की और से कब, कैसे, कौन वहन करेगा ये केन्द्र व राज्य अपने स्तर पर निपटा लेते। जबकि मजदूरों का भाड़ा चुकाने के नाम पर पूरे देश में पूरी राजनीतिक कलाबाजियां हो रही हैं।
केन्द्र सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि रेलवे प्रवासी मजदूरों को 85 प्रतिशत तक किराया छोड़ रही है वहीं बहुत से मजदूर रेलवे प्लेटफार्म पर अपने टिकट दिखा रहे हैं कि उन्होंने पूरा किराया भरा है। उधर राज्यों से किराया वसूली की भी बात हो रही है जिसमें रेलवे, राज्यों को विशेष टिकट दे रहा है और राज्यों से किराया वसूल रहा है। राज्य प्लेटफार्म पर ये टिकट मजदूरों को दे रहे हैं। संकट के इस समय में केन्द्र सरकार को चाहिए था कि वह केन्द्रीय सरकार के परिवहन में यात्रा निशुल्क करती व राज्य सरकारें अपने-अपने परिवहन में यात्रा निशुल्क करवाते। लेकिन पता नहीं क्यूं जब गरीब को राहत की बात आती है सरकारें सौ नियम कायदे बनाकर राहत देती हैं, जब राहत उद्योगों या खुद सरकार के प्रतिनिधियों, अफसरों को लेनी होती है तब किसी भी नियम की जरूरत नहीं समझी जाती। सरकार पहले डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ाकर, शराब की ब्रिकी खोलकर आमजन पर खर्चों का बोझ डाल रही है उस पर इस महामारी में आमजन को अपनी नौकरियां, कामधंधे गंवाने पड़ गए हैं।
सरकार व राजनीतिक दल मामूली किराये पर अपने-अपने स्वार्थ देख रहे हैं जबकि प्रवासी मजदूर तो बेचारा रूपये इक्ट्ठे कर एम्बुलैंस में मरीज बनकर, बंद ट्रक कंटेनरों में सामान बनकर या साईकिल एवं पैदल चलकर भी घर जाने का हौसला रखते हैं। किराया चुकाकर आराम से ट्रेन व बसों में जाना तो उसके लिए सम्मान की बात है। वह किराया देने योग्य नहीं, यह तो सस्ती लोकप्रियता बटोरने की सरकार व राजनीतिक दलों की तंग सोच है। देश का किसान मजदूर बहुत हौसले व मेहनत वाला है, वह इस देश को खड़ा करने का दम रखता है। उसे फ्री किराया, फ्री राशन देकर रोज-रोज शर्मिंदा न किया जाए। सरकार को मजदूरों की ज्यादा फिक्र है तब शोषक उद्योगपतियों, भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों व भ्रष्ट अफसरशाही से उसे बचाया जाए जोकि उसका हक व सब्सिडी का हिस्सा खाते हैं और उसे बेबस व लाचार रहने को मजबूर करते हैं।
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