उत्तर प्रदेश की कथित दुष्कर्म की घटना के बाद जातिवाद के नाम पर नफरत फैलाना बेहद चिंताजनक विषय है। यदि पीछे के 50 वर्षों की तरफ झांके तब राजनीति और जातिवाद ने मिलकर समाज की जड़ों को बुरी तरह खोखला कर दिया है। नफरत भरे माहौल में ऐसा लग रहा है कि जैसे इंसानियत नाम के शब्द की समाज में कोई जगह ही नहीं है। राजनीतिक पार्टियां और लोगों के चुने हुए नेता हाथ पर हाथ धरकर बैठे हैं। इस अति घिनौने कांड में भी वोट बैंक की राजनीति हो रही है, जो संवेदनहीनता का तमाशा बन गई है। पीड़िता और दोषियों की जाति को देखकर पैंतरे खेले जा रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को पीड़िता के परिवार से मिलने के लिए रोका गया। इसी प्रकार एक जाति से सबंधित संगठन के वर्करों द्वारा पीड़ित परिवार को मिलने पर मामले दर्ज किए गए। माहौल तनावपूर्ण बनता जा रहा है।
राजनीतिक पार्टियों के अपने हित भी हो सकते हैं, लेकिन समाज में ऐसे हालात ही क्यों बना दिये जाते हैं कि पीड़ित परिवार की आवाज को दबाकर उन पर समझौता करने के लिए दबाव बनाया जाता है। कभी पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठता है, कभी जिला प्रशासनिक अधिकारियों के आपत्तिजनक ब्यान आते हैं। यह वास्तविक्ता है कि ताकतवर लोगों द्वारा हमेशा कमजोर लोगों को दबाकर चुप करवा दिया जाता है लेकिन सरकार भी विरोध को दबाने की बजाय निष्पक्ष व प्रभावशाली कार्रवाई करने से क्यों कतरा रही है। यह भी हैरानीजनक है कि दोषियों के अलावा पीड़ित परिवार के सदस्यों का भी नारको टेस्ट करवाने के लिए कहा गया। यदि पुलिस कानून व्यवस्था को सही तरीके से बहाल करे, पुलिस के पास गरीबों की फरियाद की भी सुनवाई हो तब राजनीतिक लाभ लेने वालों को कोई मौका ही न मिले। अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई में पक्षपात पीड़ित परिवार के लिए दु:खद होता है। हाथरस मामले में राजनीतिक पार्टियां योगी सरकार पर कठोर कार्रवाई करने का दबाव बनाएं लेकिन इसे वोट बैंक का तमाशा न बनाएं।
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