भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां लोक सभा चुनाव 2019 के लिए अपने-अपने घोषणा पत्रों को जारी कर चुकी हैं। दोनों पार्टियों के घोषणा पत्रों में जमीनी वास्तविकताओं में बदलाव लाने की कोशिशें कम और वोटरों को आकर्षित करने वाले वायदे ज्यादा हैं। कांग्रेस यदि गरीबों को हर साल 72000 रुपए देने का वायदा करती है तब भाजपा ने किसानों व दुकानादारों को पेंशन देने का वायदा किया है। भाजपा के घोषणा पत्र में सबसे बड़ी बात यह है कि पेंशन राशि का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया। यूं भी भाजपा ने अपने पहले किए वायदे को दोहराते हुए किसानों को वार्षिक छह हजार रुपए देने की घोषणा भी की है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 में हुसैनीवाला फिरोजपुर में किसानों को प्रत्येक माह 5 हजार रुपए पेंशन देने की घोषणा करने के बाद चुप्पी साध ली है। उस घोषणा के अनुसार किसानों को 60 हजार रुपए वार्षिक देना बनता था जो 6000 रुपए तक ही सीमित होकर रह गया। भाजपा ने किसानों को एक लाख रुपए के कर्जे पर पांच साल तक ब्याज न लेने का वायदा किया है। उधर कांग्रेस ने पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश में किसानों के लिए कर्ज माफी योजना की शुरूआत की है। दोनों पार्टियां किसानों को आकर्षित करने के फार्मूले का इस्तेमाल कर रही हैं, लेकिन देश की कृषि, उद्योग और रोजगार के लिए कोई ठोस नीति का जिक्र तक नहीं किया गया।
इन योजनाओं के लिए पैसा कहां से आएगा और सरकार की आमदन कैसे बढ़ेगी?, इस बारे में कोई जिक्र नहीं। सवाल यह है कि क्या घोषणा पत्र का मतलब केवल लोगों को सुविधाएं देना है? या देश के आर्थिक विकास के लिए भी कुछ करना है? सच्चाई यह है कि इन योजनाओं से रोजगार में विस्तार नहीं होना। घोषणा पत्रों में पेंशन शब्द बड़ा आम हो गया है। हैरानी की बात यह है कि सरकार नए रोजगार के अंतर्गत वेतन देने की बजाय पेंशन का जिक्र करती है जिससे यह बात स्पष्ट होती है कि सरकार नौकरी देने से भाग रही है। यह भी हैरानी की बात है कि केंद्र व राज्य सरकारें कर्मचारियों को पेंशन देने से तो भाग ही रही हैं, दूसरी ओर अस्थाई कर्मचारियों को भी स्थाई नहीं कर रही।
यही भी उसी तरह उलटी गंगा बह रही है जिस तरह आठ लाख की आमदन वालों को आर्थिक तौर पर पिछड़ा मानकर आरक्षण दिया जा रहा है, लेकिन पांच लाख से अधिक आय पर टैक्स वसूला जा रहा है। पार्टियों के लिए चुनाव का तात्पर्य केवल सत्ता प्राप्त करना है, जिसमें वायदों को अमली जामा पहनाने का स्पष्टीकरण देने की बजाए वोट नीति को ही ध्यान में रखा जाता है।
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