जाति व धर्मों की राजनीति ढ़ह जाने वाली

Politics Of Religion

दिल्ली में सीएए समर्थकों एवं विरोधियों के बीच झड़पों से हुई हिंसा में अब तक 34 लोग अपनी जान गवां चुके हैं। पूरे देश में दहशत का माहौल बना हुआ है चंूकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंसा भड़काने वाले नेताओं पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया लेकिन एफआईआर से पहले आदेश देने वाले न्यायधीश का तबादला हो गया, एक बुरा संदेश पूरे देश में गया कि सरकार ही सबकी माई-बाप है। विपक्ष, मीडिया, अदालतों का शोर बहुत है परंतु सुन कोई नहीं रहा? अपनी बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक राजनीति से भाजपा भले ही केन्द्र में पुन: सत्ता में बैठ गई लेकिन राज्यों में उसे लगातार हार मिल रही है।  फिर भी बीजेपी सीएए, एनआरसी पर टस से मस नहीं है, यह कैसी राजनीति है?

राष्टÑपति इस कद्र मौन हैं उन्हें सिर्फ साईन ही करने हैं, क्या आदेश हैं कुछ फिक्र नहीं। आज भाजपा को भले लग रहा हो कि वह भारत को पूर्ण हिन्दू राष्टÑ में बदल लेगी लेकिन यह असंभव है चूंकि अगर देश ने ही हिन्दु रहना होता तब हजारों साल की पिछली सभ्यता अन्य धर्मों को यहां आने, पनपने, फलने-फूलने या नए धर्मों का उदय होने ही नहीं देती, फिर वर्तमान में धीरे-धीरे जनचेतना धर्मों की पुरानी परिपाटी से अपने आपको अलग कर रही है, जिससे महज हिन्दु धर्माधिकारी ही नहीं, ईसाई, मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध सभी परेशान व चिंतित हैं। अत: धर्म की राजनीति बहुत जल्द ढ़ह जाने वाली है।

सूचना तकनीक, पूंजी प्रधान अर्थव्यवस्थाएं, धर्मों की आपसी कलह एवं भोगवादी संस्कृति समाज को तेजी से बदल रही है। अनपढ़, गरीब रोजी-रोटी की चिंता कर रहे हैं, आधुनिक शिक्षा प्रणाली से निकले लोगों की सोच अब धार्मिक ईमारतों, रीतियों, धर्म सभाओं को फसाद की जड़ एंव बेमतलब का मानने लगी है। जिन्हें धर्मों में विश्वास भी है, वह आबादी मठों, मजिस्दों, चर्चों को खाली बैठ कमाई करने वालों का स्थान मान रही है, अत: धार्मिक आबादी अपने घर अपने शरीर तक ही धर्म को पसन्द करने जा रही है। अत: भाजपा ही नहीं साम्प्रदायिकता एवं जाति के नाम पर राजनीति करने वाले अन्य दलों को भी अब अपना ध्यान विकास की तरफ ले जाना होगा।

राजनेताओं को लोगों की सोच के अनुसार चलना होगा अन्यथा जिस तरह से धर्मों के रीति-रिवाज या पूजा आदि पुरातन एवं आडम्बर माने जाने लगा है, ठीक ऐसे ही जातिवाद व साम्प्रदायिक राजनीतिक विचारधारा को भी दकियानूसी माना जाने लगेगा। अत: राष्टÑीय दलों को अपनी-अपनी विचारधारा में नवीनता लानी होगी, जिस तरह दिल्ली में आम आदमी पार्टी शुरूआत कर चुकी है। भ्रष्टाचार, मानव विरूद्ध अपराधों से मुक्ति एवं ढ़ांचागत राष्टÑीय विकास से अब स्थानीय विकास की मांग दिन-प्रतिदिन जोर पकड़ रही है। धर्म ध्वाजाएं, धर्म के नारे, धर्म सेनाएं, जाति सेनाएं सबका अंत ज्यादा दूर नहीं है। अगर किसी को विश्वास नहीं है तो वह हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई से दिल्ली हिंसा पर बात कर रहे लोगों को जरूर देख लें, अच्छा होगा ध्यान से सुन भी लें।

 

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