लोक सभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन ने प्रधानमंत्री के खिलाफ बेहद घटिया टिप्पणी की। उन्होंने प्रधानमंत्री को राक्षस कहने के साथ साथ उनकी तुलना गंदी नाली के साथ की। यह टिप्पणी इसी कारण गंभीर है कि इस प्रकार की अमर्यादित टिप्पणी किसी आम सांसद ने नहीं बल्कि सदन में एक पार्टी के चुने हुए नेता ने की है। कांग्रेस के लिए यह बदनामी वाली घटना है, क्योंकि कांग्रेस की लोक सभा चुनावों में शर्मनाक हार हुई है। होना तो यह था कि पार्टी अपनी हार के मद्देनजर किसी ऐसे नेता को लोकसभा में कमान सौंपती जो अपनी भाषा व मुद्दों के प्रति गंभीरता से पार्टी की छवि में सुधार करता
। रंजन की टिप्पणी कांग्रेस के लिए मुसीबत बन गई है। इससे पूर्व गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान भी कांग्रेस को अपने ही पूर्व मंत्री मणिशंकर अय्यर की भाजपा विरोधी टिप्पणियों के कारण काफी नुक्सान हुआ था। दरअसल राजनीतिक गिरावट एक बड़ी समस्या बन चुकी है। करोड़ों रुपए खर्च करने से चलने वाली संसद की कार्यवाही जब निम्न स्तर के आरोप-प्रत्यारोप की भेंट चढ़ जाती है तब यह उन करोड़ों लोगों से अन्याय है जिन्होंने किसी नेता को चुनकर संसद भेजा है। यह भी वास्तविक्ता है कि लगभग हर पार्टी में कुछ ऐसे नेता हैं जो विवादित टिप्पणीयों के कारण चर्चित रहते हैं।
कई बार नेताओं की आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए पार्टी अध्यक्ष को यह कहने की नौबत आ जाती है कि सबंधित टिप्पणी का पार्टी से कोई संबंध नहीं या यह टिप्पणी उसकी निजी टिप्पणी है लेकिन यह केवल औपचारिक टिप्पणी होती है न कि समाधान। प्रत्येक पार्टी दूसरी पार्टी के नेताओं को शिष्टाचार व मर्यादा में रहने की नसीहत देती है, लेकिन अपने नेताओं के लिए अनुशासन की बात करना या उस नेता को पार्टी से निकालने की कार्यवाही न के ही बराबर है। यूं भी कांग्रेस ने मणिशंकर अय्यर को पार्टी से जरूर निलंबित किया था। इसी तरह भाजपा ने गिरीराज सिंह को सोनिया गांधी के खिलाफ माफी मांगने के लिए कहा था लेकिन राजनीतिक पार्टियां एक अचछी राजनीतिक संस्कृति का निर्माण करने में नाकाम रही। सारी राजनीतिक पार्टियों को अपने नेताओं के लिए बोल-चाल में शिष्टाचार व मर्यादा को कायम रखना होगा। नरेन्द्र मोदी भले ही भाजपा के नेता हैं लेकिन वह सवा सौ करोड़ भारतीयों के प्रधानमंत्री भी हैं।
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