पूर्व सांसद गुरदयाल सैनी से फेस-टू-फेस, …समय के साथ बदले राजनीति के मायने

-छवि देख मिलते थे टिकट, अब जीताऊ उम्मीदवार पर खेलती हैं पार्टियां दांव

कुरुक्षेत्र सच कहूँ, देवीलाल बारना । जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, वैसे ही राजनीति के मायने भी बदल रहे हैं। पहले जहां राजनीति जनता की सेवा व अपने क्षेत्र के विकास के लिए की जाती थी, अब वही राजनीति क्षेत्र के विकास के साथ-साथ अपने विकास के लिए भी की जाने लगी है। राजनीति में चमचागिरी की भी महत्ता काफी बढ़ गई है। एक समय था जब राजनेता अपनी दावेदारी पेश नही करता था, बल्कि जनता किसे अपना नेता बनाना चाहती है वह खुद दावेदारी जताती थी। दूसरी तरफ आज का समय भी है जब हर नेता टिकट की दौड़ मे है व अपनी ताकत दिखाकर टिकट लेना चाहता है।

पुरानी राजनीति व आज की राजनीति पर मंगलवार को दैनिक सच कहूँ ने विशेष बातचीत की 1987 में विधायक व 1989 में सांसद बने गुरदयाल सैनी से। गुरदयाल सिंह सैनी ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत गांव के सरपंच बनने से की। 1971 में गुरदयाल सैनी अपने गांव कैंथला खुर्द के सरपंच बने। नेक काम करने व अच्छी छवि के चलते गुरदयाल सैनी लगातार तीन बार गांव के सरपंच बने।

1987 में चौ. देवीलाल के नेतृत्व में लोकदल पार्टी ने गुरदयाल सैनी को अपनी उम्मीदवार घोषित किया। इस वक्त गुरदयाल सैनी अपनी ईमानदारी के बल पर थानेसर के विधायक चुने गए। 1989 में लोकदल जनता दल में शामिल हो गई। इस वक्त जनता दल ने गुरदयाल सैनी को कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव मैदान मे उतारा गया, जिसमें वे विजयी रहे। लोकसभा में जीत दर्ज करने के बाद उन्होने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। इस वक्त वे 11 माह तक सांसद रहे, इसके बाद उन्होंने चुपचाप लोकसभा से भी इस्तीफा दे दिया।

सैनी से बोले थे स्पीकर: यह काम एक आम आदमी ही कर सकता है।

1989 में सांसद चुने जाने के बाद गुरदयाल सैनी ने 1990 में लोकसभा से सिर्फ इसलिए इस्तीफा दे दिया कि चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन में सरकार बना ली थी। चंद्रशेखर की सरकार बनते ही गुरदयाल सैनी लोकसभा स्पीकर रविराय के घर पहुंचे और अपना इस्तीफा सौंप दिया। इस पर रविराय ने भी गुरदयाल सैनी को इस्तीफा न देने की बात कही, लेकिन इस पर गुरदयाल सैनी बोले कि जिस जनता ने उसे कांग्रेस के खिलाफ लोकसभा में भेजा, आज मै कैसे कांग्रेस समर्थित सरकार में सांसद बना रह सकता हूँ, इस कार्य के लिए मेरा दिल इजाजत नही देता।

इस पर स्पीकर रविराय खड़े हो गए व गुरदयाल से हाथ मिलाते हुए बोले कि यह काम एक आम आदमी ही कर सकता है। इस्तीफे की बात को गुरदयाल सैनी ने ज्यादा उजागर भी नही किया और सांसद आवास से अपना सामान समेट कर कैंथला गांव में पहुंच गए। वाकई ऐसे समय में सांसद की फित्ती छोड़ देना कोई छोटी बात नही थी।

सच्चे आदमी हो सच्ची बात करोगे

हरियाणा में 1996 में हरियाणा विकास पार्टी व भाजपा के गठबंधन से सरकार बन गई, स्व. बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। इस वक्त गुरदयाल सैनी भाजपा में थे। 1998 में भाजपा ने हरियाणा विकास पार्टी से समर्र्थन वापिस ले लिया गया। इस वक्त हरियाणा भाजपा के प्रभारी नरेंद्र मोदी थे। समर्थन वापिस लेने से पहले जब गुरदयाल सैनी से गठबंधन के बारे में पूछा गया तो उन्होने बोलने से पहले कहा कि मै लठपार्टी से आया हूं और लठमार ही बात करूंगा। गुरदयाल सैनी की इस सीधी-सीधी बात से नरेंद्र मोदी भी हैरान रह गए और बोले की मुझे पता है सच्चे आदमी हो सच्ची बात करोगे।

आज हर कोई अपनी जेब में डाल फिर रहा टिकट : गुरदयाल सैनी

पूर्व सांसद गुरदयाल सैनी का कहना है कि पुरानी राजनीति व आज की राजनीति में काफी बदलाव आया है। पहले जहां पार्टी उम्मीदवार को उसकी छवि देखकर ही टिकट देती थी। वहीं उम्मीदवार का पार्टी के प्रति सेवाभाव भी देखा जाता था, लेकिन आज की राजनीति बिल्कुल बदल गई है। आज पैसे के दम पर हर कोई टिकट को अपनी जेब मे मान लेता है। टिकट के लिए भी आज अपनी ताकत दिखानी पडती है। नेता लोग कपडों की तरह पार्टी बदलते रहते हैं। ऐसे में आज राजनीति आम आदमी के लिए नही रह गई।

एक्सचेंज को करवाया था इलैक्ट्रिक

जिस वक्त गुरदयाल सैनी सांसद बने उस वक्त कुरुक्षेत्र बीएसएनएल एक्सचेंज इलैक्ट्रिक नही थी। गुरदयाल सैनी बेशक इस दौरान मात्र 11 माह के लिए सांसद रहे, लेकिन उन्होने इस समय में बीएसएनएल एक्सचेंज को इलैक्ट्रिक करवाया।

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।