लोकसभा चुनाव 2019 के लिए सत्ताधारी एनडीए के नेतृत्व वाली भाजपा व यूपीए की मुख्य पार्टी कांग्रेस ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके साथ ही विरोधी ब्यानबाजी का सिलसिला शुरू हो गया है। एक पार्टी के नेता का बयान आता है तो दूसरे का जवाब तैयार होता है। इस तरह राजनीति सिर्फ गर्म व तीखे भाषणों का नाम ही बन कर रह जाती है। ब्यानबाजी में मुद्दे दब जाते हैं और टकराव बढ़ जाता है।
सभी पार्टियों को अपनी जिम्मेवारी निभाते हुए इस दिशा में ऐसे कदम उठाने की जरूरत है, ताकि राजनीति में विरोधी ब्यानबाजी की बजाय उचित व दमदार बहस हो सके। अमेरिका व अन्य यूरपी देशों में चुनाव प्रचार के अधुनिक, कम लागत व प्रभावशाली साधन व ढंग हैं। वहां के नेता बिना कोई बड़ी भीड़ एकत्रित किए ही लाखों लोगों तक अपनी बात को पहुंचा देते हैं। यही कारण है कि उन देशों में सियासी भ्रष्टाचार कम है। हमारे देश की सियासत रैली सियासत है, यहां मुद्दों से अधिक भीड़ एकत्रित करने पर जोर दिया जाता है।
भीड़ एकत्रित न हुई तो नीचले स्तर के नेता चाहे कितने भी सफल क्यों न हो, उनकी शामत आ जाती है। भीड़ के लिए हर तरह के गैर कानूनी हथकंडे भी अपनाए जाते हैं। रैली कल्चर ने न सिर्फ सियासत को भ्रष्ट किया, बल्कि इसने समाज में भ्रष्टाचार की जड़ों को और गहरा किया है। राजनीति में मुद्दे कम व तकरारबाजी अधिक हो रही है। मुद्दों की चर्चा भी होती है, किन्तु यहां भी सियासी पार्टियां जनता को गुमराह करने पर सारा जोर लगा देती हैं। राजनीति में सच्चाई व सपष्टता कम रही है और दिखावे का जोर बढ़ रहा है। इस माहौल में आम आदमी अचंभित नजर आ रहा है। सत्ता के लिए जोर अजमाईश के साथ-साथ मद्दों प्रति ईमानदारी जरूरी है। कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार ऐसे मुद्दे हैं, जो देश के विकास का आधार है।
राजनीति सिर्फ पार्टियों की वोट नीति न बन कर आम आदमी की बेहतरी के लिए विकास की नीति होनी चाहिए। बेशक आम आदमी सियासत में पैर नहीं रखता, किन्तु यह माहौल जरूर पैदा हो गया है कि आम आदमी के मुद्दों को कोई पार्टी नकार नहीं सकती। चुनाव सुधारों की जिम्मेवारी सिर्फ चुनाव आयोग पर फैंकने की बजाय सियासी पार्टियां भी देश की बेहतरी के लिए आगे आएं।