सर्वोच्च निर्णय के बावजूद सियासत जारी

supreme decision

देश का सर्वोच्च न्यायालय अयोध्या मामले में न्याय प्रदान कर चुका है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का देशभर ने स्वागत किया। इस मामले से जुड़े सभी पक्ष निर्णय से संतुष्ट दिखाई दिये। हां, इन सबके बीच चंद असहमति के स्वर भी सुनाई दिये। लेकिन मुखर तौर पर असहमति, अप्रसन्नता और अनावश्यक बयानबाजी कहीं सुनाई और दिखाई नहीं दी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से पूर्व सभी पक्षों ने न्यायालय के निर्णय को मानने की सार्वजनिक सहमति प्रकट की थी।

निर्णय आने के बाद ये स्वर सुनाई दिये कि अब इस मुद्दे को लेकर राजनीति करने वालों की दुकानें बंद हो जाएंगी। ये स्वर भी सुनाई दिये कि अब इस मुद्दे पर वर्षों से चली आ रही राजनीति नहीं होनी चाहिए। चूंकि सभी पक्षों ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को मानने का भरोसा देश को दिया था। इसलिए ऐसा लग रहा था कि निर्णय आने के बाद यह मामला हमेशा के लिए समाप्त हो गया है। लेकिन निर्णय आने के ठीक नौ दिन बाद आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक बैठक में यह निर्णय लिया कि वो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेगा।

मामले के पक्षकर इकबाल अंसारी और सुन्नी वक्फ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के अपने निर्णय पर अडिग हैं। मुस्लिम पक्ष के पांच पक्षकार हैं। मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी ने बोर्ड के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, ‘‘कोई क्या कह रहा है, इससे हमें कोई लेना-देना नहीं है। हम रिव्यू याचिका नहीं दाखिल करने जा रहे हैं। पुनर्विचार याचिका का मतलब नहीं, जब फैसला वही रहेगा। इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ेगा।’’ सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद आईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने असहमति और अप्रसन्नता के शब्द मुंह से निकाले थे।

पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक से पूर्व भी असदुद्दीन ओवैसी ने बयान दिया था कि, ‘‘मुझे मेरी मस्जिद वापस चाहिए।’’ अयोध्या जमीन विवाद देश के पुराने और संवेदनशील मामलों में शामिल रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस विवाद के चलते हिंदु और मुस्लिमों के मध्य तनाव का वातावरण पिछले कई दशकों से बना हुआ था। इस मामले को लेकर दोनों ओर से जमकर राजनीति की गयी। हिंदू और मुस्लिमों के कई संगठनों और नेताओं की दुकानें अयोध्या विवाद के कारण गत कई दशकों से ठीक ठाक तरीके से चल रही थीं।

सर्वोच्च न्यायालय में भी अयोध्या मामले को लटकाने और विलिंबत करने के प्रयास भी किये गये। लोकसभा चुनाव से पूर्व लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने प्रतिदिन सुनवाई करने का निर्णय लिया और सभी पक्षों को निश्चित समय में अपना पक्ष रखने की समय सीमा निर्धारित कर दी। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने भी सर्वसम्मति से निर्णय सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में दूध का दूध और पानी का पानी करने का काम किया।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को ध्यान से पढ़ा जाए तो सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले से जुड़े सभी विवादों, पक्षों, तथ्यों, तर्कों, प्रमाणों, ऐतहासिक एवं धार्मिक संदर्भो के सूक्ष्म अध्ययन के बाद ही निर्णय को लिखा है। निर्णय आने के बाद देशभर से इसकी सकारात्मक प्रतिक्रियाएं सुनने, देखने और पढ़ने को मिली। देशभर में इस निर्णय के बावजूद शांति, भाईचारा और आपसी सौहार्द कायम रहा है। शायद यही बात चंद लोगों को नागवार गुजरी।

134 वर्षों तक न्यायालय में मामला चलता रहा। राजनीतिक क्षेत्र में भी राम को खूब घसीटा गया । इस मुद्दे को लेकर लगभग हर राजनीतिक पार्टी में राम नाम का क्रेडिट लेने की होड़ मची हुई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और यूपी कांग्रेस के मीडिया प्रभारी राजीव त्यागी ने एक समाचार चैनल को बयान दिया कि, कांग्रेस ने राम मंदिर के लिए आंदोलन किया। पार्टी ने ताला खुलवाया और अब इसका श्रेय भाजपा लूट रही है। शिवसेना भी राम मंदिर के मुद्दे पर वर्षों से राजनीति करती आयी है। दरअसल विवादित ढांचा गिरने के बाद तत्कालीन शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने सीना ठोक कर कहा था कि मुझे इस घटनाक्रम पर गर्व है। हालांकि वे अयोध्या नहीं आए। पिछले वर्ष शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अयोध्या आये थे। खुद मंच से उन्होंने कहा कि मैं आता-जाता रहूंगा।

भारतीय जनता पार्टी ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि भाजपा देर सवेर इस मामले को अपने पक्ष में भुनाने से बाज नहीं आएगी। राम मंदिर आंदोलन ने ही भाजपा को देश में एक अलग पहचान दिलाई। राम मंदिर का मुद्दा भाजपा के एजेण्डे में शामिल रहा है। भला हो भारतीय न्याय प्रणाली और माननीय उच्चतम न्यायालय का, जिसने इस विवाद को समाप्त करने का ऐतिहासिक कार्य किया है।

देश की सर्वोच्च अदालत ने सर्वोच्च फैसला दिया है। इस निर्णय के आने से भारतीय न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास बढ़ा है। मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि सरकार द्वारा अधिग्रहीत 67 एकड़ भूमि से जमीन मिलती है तभी स्वीकार किया जाएगा। मुस्लिम समुदाय मस्जिद बनाने के लिए अपने पैसे से जमीन खरीद सकते हैं और वे इसके लिए केंद्र सरकार पर निर्भर नहीं हैं। इधर, केंद्र सरकार ने अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट के गठन की प्रक्रिया शुरू की है। वहीं आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक के बाद बाहर आए जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमें मालूम है कि याचिका सौ फीसदी खारिज हो जाएगी। इसके बावजूद हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे। यह हमारा हक है।

वास्तव में एक पक्ष या वर्ग देश में ऐसा है जिसे शांति, सौहार्द, विकास और भाईचारा रास नहीं आता है। उसे सर्वोच्च न्यायालय में भी विश्वास नहीं है। अयोध्या विवाद एक शताब्दी पुराना है, ऐसे में इससे जुड़ी सियासत भी जाते-जाते थोड़े समय तो लेगे ही। चूंकि देशवासी आगे बढ़ना चाहते हैं, एक नये भारत का निर्माण करना चाहते है, ऐसे में अपनी दुकानें बंद होती देख चंद लोग बौखलाए हुए हैं। लॉ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल करे, वास्तव में ये उनका अधिकार है। लेकिन हर सूरत में देश में शांति, सौहार्द, भाईचार कायम रहना चाहिए और संवैधानिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता पर अकारण अंगुली भी नहीं उठनी चाहिए।
-आशीष वशिष्ठ

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