शुक्र है पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव का काम संपूर्ण हो गया है। अब नेताओं को कोरोना को हराने के लिए दिनरात कर देना चाहिए। कुछ सरकारों एवं राजनीतिक दलों ने अनियंत्रित होती कोरोना महामारी एवं बढ़ती मौतों के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन किया है। असंख्य लोगों के जीवन-रक्षा जैसे मुद्दों के बीच में भी राजनीति करने एवं राजनीतिक लाभ तलाशने की कोशिशें जमकर हुई हैं। कोरोना की त्रासदी एवं पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव साथ-साथ होने के कारण समूचे चुनाव-प्रचार के दौरान हमारे राजनीतिक नेतृत्व ने एक गैर-जिम्मेदाराना अलोकतांत्रिक व्यवहार का उदाहरण पेश किया है। सत्ता की राजनीति को प्राथमिकता देने वाले हमारे नेता यह भूल गये कि जनतंत्र में राजनीति सत्ता के लिए नहीं, जनता के लिए, जनता की रक्षा के लिये होनी चाहिए।
बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल ने लगातार तीसरी बार परचम लहराकर इतिहास रच दिया है। उधर भाजपा ने असम और पुुडुचिरी में अपनी जीत बरकरार रखी है। केरल में भी वामपंथी का किला महफूज रहा। भाजपा जैसी बड़ी और केंद्र में सत्ताहीन रही पार्टी के धुंआंधार प्रचार के सामने ममता बनर्जी की पार्टी डटी रही, इसी प्रकार सीएए के समर्थन या विरोध को भी चुनावों के प्रसंग में समझना फिलहाल मुश्किल है। दरअसल लोगों का पूरा ध्यान कोरोना महामारी की तरफ है। जनता इससे मुक्ति चाहती है। इसके बावजूद लोगों ने वोट के अधिकार का प्रयोग कर अपनी जिम्मेदारी निभाई है। अब राज्यों में नई सरकारें बनेंगी और अब सभी की बड़ी जिम्मेदारी है कि वह महामारी को खत्म करने के लिए ठोस नीतियां और कार्यक्रम बनाएं। चुनावों का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्ति नहीं। कोरोना महामारी के कारण एक बार फिर शिक्षा, रोजगार और अर्थव्यवस्था प्रभावित होने लगे हैं।
लोकतंत्र के सफल संचालन में जितनी सत्तापक्ष की भूमिका रहती है, उतनी ही विपक्ष की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। समूह कोरोना संकटकाल में विपक्ष ने केन्द्र सरकार की टांग खिंचाई के अलावा कोई भूमिका नहीं निभाई। जब पहली बार लॉकडाउन लगाया गया तब विपक्ष ने आक्रामक होकर इस पर आपत्ति जताई, कहा कि ये मजदूरों की रोजी-रोटी छीनने और अंबानी-अडानी को फायदा पहुँचाने की साजिश है। तत्पश्चात वैक्सीन पर सवाल खड़े किये और कहा कि ये वैक्सीन प्रामाणिक एवं विश्वसनीय नहीं है, ये वैश्विक मानकों पर खरी नहीं उतर रही। वैक्सीन के प्रति जनमानस के मन में अविश्वास पैदा किया गया, तत्पश्चात वैक्सीन के कथित दुष्प्रभावों का रोना रोया गया। अब वक्त है सभी दलों को एकजुट होकर इस महामारी से जंग जीतने के लिए प्रयास करने चाहिए। कोरोना काल में यह चुनौतीपूर्ण लड़ाई केवल राजनीतिक ब्यानबाजी, एक दूसरे के खिलाफ निंदा प्रचार के साथ नहीं जीती जा सकती।
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