प्रसिद्ध गायक शुभदीप सिंह सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने न केवल पंजाब के लोगों बल्कि देश-विदेश में बैठे भारतीयों को भी झकझोर दिया है। सिद्धू के संस्कार के वक्त गमगीन लोगों और माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल था, जो हर किसी का कलेजा चीर रहा था। इस दर्दनाक दृश्य को देखकर हर कोई पिघल रहा था और गमगीन चेहरे बिना बोले ही बहुत कुछ कह रहे थे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर मिनटों में किसी की हत्या करने वाले गैंगस्टर कैसे पैदा हो जाते हैं? इसका उत्तर मिल सकता है पिछले दिनों की राजनीति को देखें। कई दशकों से बुद्धिजीवी और समाजशास्त्री यही दुहाई दे रहे थे कि राजनेता विकास की बात नहीं कर रहे और युवाओं को बुरी तरह दरकिनार कर रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों ने युवाओं के उज्जवल भविष्य के लिए कुछ करना तो दूर वो अपने-अपने यूथ विंग बनाकर राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति कर रहे हैं।
यूथ विंग तरक्की की बात करने की बजाय चुनावों में हिंसा करती है, जिनका मुख्य उद्देश्य पोलिंग बूथों पर जाकर दहशत फैलाना रहता है। यूं भी यूथ विंग के अध्यक्ष अमीर घरों के बनते रहे हैं, आम युवाओं का पार्टी के यूथ विंग के साथ संबंध कम ही रहा है। रही-सही कसर राजनीतिक पार्टियों ने भटके युवाओं को चुनावों के लिए हिंसा में इस्तेमाल कर निकाल दी। भटकते युवा गैंगस्टरों के नाम पर प्रसिद्ध होने लगे। जिन हाथों में पुस्तकें होनी चाहिए थीं, उन हाथों में हथियार पकड़ा दिए गए। जेलें बुरी तरह से बदनाम हो चुकी हैं। सरकारों ने युवाओं की खुशहाली के लिए कुछ करने की बजाय केवल ब्यानबाजी के पैंतरे ही चले। समाज में दूरियां बढ़तीं गई। पैसे की लूटपाट, फिरौतियां और धमकियां देना समाज का आम व्यवहार बनतीं गई। गैंगस्टरों के ग्रुप बढ़ते गए। किसी नेता या पार्टी ने गैंगस्टरोें को हिंसा त्यागने के लिए न तो प्रेरित किया और न ही कोई नीति बनाई।
दूसरी तरफ इतिहास यह है कि जब सरकारों ने चाहा था तब फूलण देवी, मोहर सिंह जैसे डाकू हथियार डालकर आमजन के हितों की बात करने लगे, उन्होंने चुनाव भी लड़े और समाज सुधार के कार्यों में जुट गए। नि:संदेह सिद्धू मूसेवाला के हत्यारों को सजा मिलनी चाहिए लेकिन हिंसा की समस्या की जड़ को भी काटना होगा। समाज में ऐसा आर्थिक और राजनीतिक ढांचा स्थापित करना होगा कि युवा हिंसा की तरफ न जाएं। रोजगार के अवसर पैदा करने के साथ-साथ भटक रहे युवाओं को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए सामाजिक रूप से भी प्रयास करने होंगे, क्योंकि यह मामला राजनीतिक ही नहीं बल्कि इसके सामाजिक पहलू भी हैं। सरकारों और सामाजिक संगठनों को एकजुट होकर हिंसा के रास्ते पर चलने वाले युवाओं को समझाना होगा। राजनेता हर बार चुनाव जीतने की आदत छोड़ लोगों और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएं। जेलों को सुधारने की आवश्यकता है।
जेलों को नशे और अपराधों का अड्डा बनने से रोकना होगा। पूर्व जेल मंत्री पंजाब सुखजिंदर सिंह रंधावा पांच साल तक दावा करते रहे कि जेलों में बहुत सुधार कर दिया गया है अफसोस उनके होते हुए भी जेलों में मोबाइल फोन और नशा मिलता रहा। इसके अलावा लड़ाई-झगड़े और हत्याएं तक होती रहीं। फिर भी पूर्व मंत्री का यही बयान आता है कि जेलों में सुधार किया है। सुधार महज कागजों तक सीमित न हों बल्कि वास्तविक रूप में भी नजर आए। जेलें सुधार गृह बनें न कि गैंगस्टरों के अड्डे। साथ ही सिद्धू की हत्या से नौजवान गायकों को अब हिंसक गीतों, गन कल्चर की तुकबंदी बंद कर देनी चाहिए। संस्कृति में प्यार, खुशहाली, मौसम-बहारें, बचपन, जवानी, आपसी रिश्ते बहुत कुछ है। गाने के लिए अब उन्हें गाया जाए।
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