पंजाब में सियासी बदलाखोरी का रुझान रुकने का नाम नहीं ले रहा। विधान सभा चुनाव के बाद राज्य के विभिन्न हिस्सों में सत्ताधारी पार्टी के नेताओं पर विरोधियों को सबक सिखाने के आरोप लगे हैं। ताजा घटना में मलोट के एक अकाली नेता के पुत्र पर हमला हुआ है। निम्न स्तर पर सियासी हिंसा की बहुत सारी घटनाएं घटित होती रहती हैं, जिनमें कुछ घटनाएं ही बड़ी चर्चा का कारण बनती हैं। यह घटनाएं चिंताजनक हैं व सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है। हालांकि मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह अच्छे प्रशासक माने जाते रहे हैं। पार्टी के नेताओं पर कंट्रोल रखना उन्हें अन्य सियासतदानों से अलग पहचान देता था। मुख्य मंत्री को ताजा घटनाओं के मद्देनजर जहां पार्टी नेताओं को सद्भावना भरी सियासत का पाठ पढ़ाना चाहिए, वहीं पुलिस की भूमिका को निषपक्ष बनाने की जरूरत है।
अमरेन्द्र सिंह ने मुख्य मंत्री बनते ही यह घोषणा की गई थी कि कांग्रेस सरकार में सियासी बदलाखोरी नहीं होगी। उच्च स्तर पर यह बात कुछ हद तक अमल में भी आई। अमरेन्द्र सिंह की बयानबाजी में विरोधियों के लिए तीखे शब्दों की बजाए संयम अधिक महसूस किया गया। सरकार बनने के बाद उन्होंने बादलों की आलोचना तो की, किन्तु रगड़े कम लगाए, जबकि निम्न स्तर पर सियासी नेता अपने निजी हितों के लिए असूलों व अनुशासन को ताक पर रख देते हैं। सिर्फ कांग्रेस सरकार में ही नहीं, बल्कि अकाली-भाजपा सरकार के समय भी सियासी बदलाखोरी चरम पर थी। कांग्रेसियों पर धड़ाधड़ मामले दर्ज किए गए।
कई जगह हिंसा की घटनाएं भी घटी। यह मामला सिर्फ कानूनी सख्ती से हल नहीं होगा, बल्कि वरिष्ठ नेता पार्टी में असूलों को बरकरार रखने क लिए अपना विशेष योगदान भी दें। फिलहाल अभी तो यह हालात हैं कि अच्छा-बुरा देखे बिना ही दूसरी पार्टी के बड़े-छोटे नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया जाता है। चरित्र व अनुशासन राजनीति से गायब होते जा रहे हैं। किसी को पार्टी की प्रार्थमिक सदस्यता देते समय उसके चरित्र व विचारों की भी कोई जांच-पड़ताल जरूरी होनी चाहिए। बिना शक सियासी हिंसा सियासत में आई गिरावट का परिणाम है। वरिष्ठ नेताओं को निम्न स्तर नेताओं को कंट्रोल में रखने के लिए सियासत की तासीर बदलने की जरूरत है, नहीं तो इस बार का पीड़ित अगली बार का हमलावर बना रहेगा।