पश्चिमी बंगाल में वही सब कुछ हो रहा है, जिस डर की कुछ दिन पहले आशंका प्रकटाई गई थी। वहां राजनैतिक बदलेखोरी हिंसा का रूप धारण करने लगी है। तृणमूल कांग्रेस के विधायक सत्याजीत बिस्वास की हत्या हो गई है। पुलिस ने इस मामले में भाजपा विधायक मुकुल राय के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। दरअसल केंद्र व राज्य सरकार के बीच बढ़ रहा तनाव केवल समाचारों तक सीमित नहीं होता बल्कि यह नफरत की वह दीवार खड़ी कर जाता है जो हिंसा पर जाकर ही समाप्त होता है।
इससे पूर्व केरल व अन्य राज्यों में टकराव दुखांतक रूप ले चुका है। मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी व भाजपा नेता एक दूसरे पर शब्दिक प्रहार कर रहे हैं। ममता सीबीआई का दुरुपयोग के आरोप लगा रही है दूसरी तरफ भाजपा नेता तृणमूल कांग्रेस को भ्रष्ट बता रहे हैं। साकारात्मक बहस का युग समाप्त हो गया है। राजनीति एक बुराई का रूप धारण कर चुकी है जहां वोट के लिए कुछ भी किया जा सकता है। स्थिति का दुखांत यह है कि लोकतंत्र का हनन कौन नहीं कर रहा, इस बात को समझना कठिन है।
आम तौर पर राजनैतिक बदलेखोरी का शब्द तब इस्तेमाल किया जाता है जब एक पक्ष सत्ता में और दूसरा विपक्ष हो लेकिन कोलकाता का मामला एक अलग उदाहरण है जहां दोनों पक्ष सत्ता में हैं। एक केंद्र में है और दूसरी राज्य में। दोनों के पास अपनी संस्थाओं को इस्तेमाल करने के रूप में ताकत है। केंद्र के पास सीबीआई है जिसके द्वारा उसने ममता सरकार को घेरने की कोशिश की, दूसरी तरफ ममता के पास बंगाल की पुलिस है, वह सीबीआई के पूर्व अधिकारियों व भाजपा नेता के खिलाफ पूरे जोर-शोर से इस्तेमाल कर रही है। पॉवर का दुरुपयोग में किसी एक को क्लीन चिट्ट देना मुश्किल है। पुलिस व सीबीआई को दोनों पक्ष खुलकर दुरुप्रयोग कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही थी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मामला थम जाएगा, लेकिन बढ़ रही हिंसा से लग रहा है कि पार्टियां इस घटनाक्रम से सबक लेने के लिए तैयार नहीं। केंद्र व पश्चिम बंगाल सरकार दोनों को चाहिए कि वह संयम रखें।
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