राजनीतिक हिंसा व विद्यार्थी

Political violence

दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में आधी रात को विद्यार्थियों व अध्यापकों पर हुआ जानलेवा हमला निंदनीय घटना है। देश की राजधानी सबसे सुरक्षित मानी जाती है लेकिन एक शैक्षिणक संस्था में हिंसा की घटना सुरक्षा व्यवस्थ पर सवाल खड़े करती है। जेएनयू के विद्यार्थियों की वामपंथी सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेना सदैव चर्चा का विषय रहा है लेकिन केन्द्र व दिल्ली में वामपंथी हाशिए पर हो रहे हैं लेकिन विपक्ष की विचारधारा होने के बावजूद विश्वविद्यालय में सुरक्षा प्रबंध सरकार की जिम्मेदारी है। एक यूनिवर्सिटी में हथियारबंद हमलावरों का बेखौफ होकर घुसना, कई सवाल खड़े करता है। देश पहले ही राजनीतिक हिंसा का सामना कर रहा है।

केरल, पश्चिमी बंगाल व कई राज्यों में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के वर्कर पहले भी काफी खून बहा चुके हैं। यदि जेएनयू का मामला फिर विवादों में आता है तब इसका बुरा प्रभाव देश के अन्य हिस्सों पर पड़ सकता है। कानून को हाथ में लेने वालों के खिलाफ किसी भी प्रकार की ढील बरतना घातक साबित होगा। विरोधी पार्टियों को भी इस मामले में संयम व जिम्मेदारी से काम करना चाहिए। हमलावरों पर राजनीतिक वरदहस्त होने के भी आरोप लग रहे हैं दूसरी ओर जेएनयू के विद्यार्थी नेताओं की भी राजनीतिक पार्टियों के साथ वफादारी भी उतनी चर्चा में है अत: राजनीतिक वर्कर्स व यूनिवर्सिटियों छात्रों में अंतर ढूँढना मुश्किल हो गया है।

दरअसल पूरे देश में राजनीतिक रणनीति ही इस प्रकार की बन गई है कि अन्य वर्गों की तरह विद्यार्थी वर्गों को भी पार्टियों ने अपने-अपने विंग बना लिया है। इस चलन का परिणाम यह है कि विद्यार्थी राजनीतिक पार्टियों के स्वार्थ हितों की पूर्ति का हथियार बनते जा रहे हैं। राजनीति व शिक्षा के आपसी सम्बधों से इनकार नहीं लेकिन शिक्षा को राजनीतिक रंग देना देश के साथ सरासर खिलवाड़ है। बेहतर हो यदि राजनीतिक पार्टियां अपने हितों को साधने की बजाए जनता के हितों को संसद /विधान सभा या राजनीतिक सभाओं तक सीमित रखें।

अन्यथा वर्तमान राजनीतिक चलन विद्यार्थियों को पुस्तकों की जगह हथियार थमाकर विचारों की लड़ाई को हथियारबंद लड़ाई की तरफ धकेल देगा। फिर भी यदि विद्यार्थियों ने राजनीति करनी है तब इसमें हथियारों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। देश के असंख्य नेता अपने विचारों के कारण ही राजनीति में छाए थे न कि उन्होंने कभी हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया या दंगा फसाद किया। केंद्र सरकार हमले की उच्च स्तरीय जांच करवाए, दोषियों को सजा दिलाए और यूनिवर्सिटी में शिक्षा का माहौल बनाने के लिए तेजी से काम करें।

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