पाकिस्तान एक बार फिर अस्थिरता की गिरफ्त में है। संसद में अविश्वास प्रस्ताव खारिज होने और नेशनल असेंबली भंग किए जाने के मामले में सोमवार को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। विपक्षी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने एक याचिका दायर की थी, इसमें कहा गया कि इस मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के सभी 16 जजों की बेंच बनाई जाए। इस मांग को तीन जजों की बेंच ने खारिज कर दिया। भले ही वह भारी जनादेश वाली नवाज शरीफ की सरकार हो या साधारण बहुमत वाली इमरान खान की सरकार, किसी सैन्य तानाशाह को उसे गिराते देर नहीं लगती है। पाकिस्तान का राजनीतिक इतिहास उथल-पुथल भरा व रक्तरंजित रहा है। चुनी हुई सरकारों को सैन्य तानाशाहों ने चार बार गिराया है।
दो प्रधानमंत्रियों को न्यायपालिका ने बर्खास्त किया, जबकि एक पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी गयी और एक पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गयी। मौजूदा घटनाक्रम उसी उथल पुथल का दोहराव है। सेना द्वारा अपने हाथ खींच लेने के बाद कई सहयोगियों ने भी इमरान खान का साथ छोड़ दिया। सभी जानते हैं कि इमरान खान ‘इलेक्टेड’ नहीं, बल्कि सेना द्वारा ‘सिलेक्टेड’ थे। कोरोना से उत्पन्न संकट के बाद तो सेना ने सत्ता पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया था। इमरान खान पहले कठपुतली प्रधानमंत्री थे और उसके बाद वे मात्र मुखौटा प्रधानमंत्री रह गये थे। यह तथ्य जगजाहिर हैं कि पिछले आम चुनाव में सेना ने पूरी ताकत लगाकर इमरान खान को जिताया था और इसके लिए बड़ी हेराफेरी भी की गई थी। चुनाव प्रचार और मतदान से लेकर मतगणना तक सारी व्यवस्था सेना ने अपने नियंत्रण में रखी थी।
सुरक्षा एजेंसियां ने चुनावी कवरेज को प्रभावित करने के लिए लगातार अभियान चलाया। जो भी पत्रकार, चैनल या अखबार नवाज शरीफ के पक्ष में खड़ा नजर आया, खुफिया एजेंसियों ने उन्हें निशाना बनाया था। चुनाव से ठीक पहले भ्रष्टाचार के एक मामले में नवाज शरीफ को 10 साल कैद की सजा सुना दी गयी थी, ताकि इमरान खान सत्ता के मजबूत दावेदार बन कर उभर सकें। रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर पाकिस्तान की हालात विचित्र है। इमरान खान रूस के समर्थन में खड़े नजर आये, तो सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा ने इसके उलट रुख अपनाया है। बाजवा ने यूक्रेन पर रूसी हमले को तुरंत रोकने की मांग की है। कहा जाता है कि पाकिस्तान में सत्ता तीन ए- आर्मी, अल्लाह और अमेरिका- के सहारे चलती है। पुरानी कहावत है कि आप अपना मित्र बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं। पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है, इसलिए न चाहते हुए भी वहां की घटनाएं हमें प्रभावित करती हैं।
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