पंजाब की राजनीतिक पार्टियां 2022 के विधान सभा चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। इस बार चुनाव की रणनीति और परिस्थितियां बिल्कुल बदले हुए है। विगत चुनावों तक बड़ी रैलियों की रणनीति बनाई जाती थी। जो पार्टी सबसे बड़ी रैली करने में सफल रहती थी, तो उन्हें चुनाव जीतने की उम्मीद बंध जाती थी। भाषणों में खूब वायदों के राजनीतिक शगूफे छोड़े जाते हैं। पहले होता यह रहा है कि जो पार्टी वायदों में चकमा देने में सफल रही, वही सरकार बनाती रही है, आज वायदे पूरे होने की वास्तविक्ता सभी के सामने है, लेकिन इस बार तस्वीर कुछ हटकर है। पार्टियां रैलियां करने या मुद्दों की बात करने की बजाय दूसरे को बदनाम करने के लिए पूरा जोर लगा रही हैं। एक दूसरे पर कीचड़ फेंकने के चलन में तर्कहीन व मनघढ़त कहानियां बनाकर झूठ पर झूठ बोला जा रहा है।
ऐसी बातें बनाई जा रही हैं, जिनका कोई सिर-पैर ही नहीं। राजनीति शब्द से नीति शब्द खत्म होकर केवल राज तक सीमित हो गया है। बस उनका केवल एक ही मकसद है कि सत्ता कैसे हासिल की जाए। नीति शब्द अब चाल का रूप धारण कर गया है। चालें चलने के लिए सलाहकार भी नियुक्त किए जाते हैं, वे किसी बात को कहानी बनाने का काम करते हैं, लेकिन बना नहीं पाते क्योंकि सच तो सच ही होता है। इस बार बेअदबी के नाम पर एक दूसरे पर कीचड़ उछाला जा रहा है। बेअदबी की दुखद घटनाओं में भी सत्ता तलाशने की कोशिशें जारी हैं। यह हैवानीयत शैतानियत की मिसाल है।
झूठ को सच बनाने के लिए झूठ की कहानी बनाने में विशेषज्ञ अधिकारियों की मदद ली जाती है। अब फिर उस पूर्व अधिकारी का नाम सामने आ रहा है जो डेरा श्रद्धालुओं के खिलाफ झूठी कहानी के लिए बदनाम हो चुका है लेकिन इस झूठ के व्यापार में सिवाय बदनामी से कुछ नहीं मिलना, कुछ का पर्दाफाश हो रहा है। यह चलन मर चुकी जमीन और खोखले हो चुके मानवीय शरीर (राजनेताओं) का प्रतीक है, जिस शरीर में सच्चाई, धर्म, नैतिकता के नाम की कोई वस्तु नहीं उनके लिए सत्ता ही धर्म, नैतिकता और जिंदगी है। सत्ता के लिए वह नेकी, भलाई, मानवता का बात करने की कोशिश की जाती है, लेकिन सच्चाई को दबाया नहीं जा सकता।
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