राज्यसभा चुनावों के लिए जोर-अजमाईश में मध्य प्रदेश में दल बदल के प्रयासों के साथ राजनीतिक गिरावट की एक और घटना सामने आई है। सत्तापक्ष दल के 10 विधायक गायब थे जिनमें से 6 विधायक वापिस लौट आए हैं और चार अभी भी गायब हैं। इससे पूर्व भाजपा नेता दावा कर रहे हैं कि 10 कांग्रेसी विधायक उनके संपर्क में हैं। स्पष्ट है कि राजनीति में चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने से ये नेता संकोच नहीं करते।
सरकारें गिराना एक राजनीतिक ड्रामे का हिस्सा बन गया है। इससे पूर्व कर्नाटक और गोवा में ऐसी अलोकतांत्रिक घटनाएं हावी रही हैं जिन्होंने लोकतंत्र का दिवाला निकाल दिया। अब यह प्रतीत हो रहा है कि मुद्दों की राजनीति में पार्टियों का विश्वास ही नहीं रहा और राजनेता सस्ती राजनीति करने के लिए विधायकों को लुभाने में जुट जाते हैं। दलबदल विरोधी कानून को नाकाम करने की कोशिशों की जा रही हैं। कभी विधायकों को किसी होटल में ठहराया जाता है। कभी हवाई जहाजों के मजे करवाए जाते हैं। कर्नाटक के विधायकों को मुंबई पहुंचाया गया था जब संबंधित पार्टी का नेता अपने विधायकों को मनाने के लिए मुंबई पहुंचा तब उसे जबरन वहां से निकाल दिया गया। राजनीति विचारों की लड़ाई की बजाय तिकड़मबाजी बनती जा रही है लेकिन सारा आरोप विधायकों को भरमाने वाली पार्टी का ही नहीं बल्कि उन विधायकों की मंशा पर भी सवाल खड़े करता है जो किसी न किसी लालच में आकर एक से दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं।
दलबदल कानून को और सख्त बनाने पर इसमें संशोधन करने की आवश्यकता है। दरअसल दलबदल विरोधी कानून राजनीतिक अस्थिरता को रोकने के लिए बनाया गया था लेकिन देश की राजनीतिक परिस्थितियां और नेताओं में सत्ता मोह की प्रवृत्ति के कारण यह कानून अभी भी अपने उद्देश्य को पूरा करने में कामयाब नहीं हो पा रहा। मंत्री की झंडी वाली कार, कोठी भत्ते के आकर्षण के कारण मूल पार्टी को छोड़ा जाता है। राजनीति गिनती का खेल नहीं बननी चाहिए। कानून विशेषज्ञों व बुद्धिजीवियों को इस मामले में अपने विचार व सुझाव देकर सुधार के लिए प्रयास करने होंगे। सत्ता में सुविधाओं का लाभ घटने की बजाय बढ़ रहा है और बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार कानून में बदलाव जरूरी बन गया है।
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