देश की राजधानी दिल्ली व एनसीआर का क्षेत्र दीपावली के त्यौहार के बाद से एकबार फिर मीडिया की जबरदस्त चचार्ओं में शामिल है। हर बार की तरह इस बार भी चर्चा की वजह है दिल्ली में बढ़ता वायु प्रदूषण, अपने जानलेवा वायु प्रदूषण के लिए विश्व में प्रसिद्ध हो गयी देश की राजधानी दिल्ली दीपावली के बाद से काले धुएं के बादलों के आगोश में छिपी हुई है। वायु प्रदूषण के चलते लोगों को भगवान सूर्यदेव के दर्शन बहुत ही मुश्किल से हो पा रहे हैं। लेकिन हम हंै कि फिर भी सुधरने का नाम नहीं लेते हैं अपने ही हाथों से अपने प्यारे चमन में आग लगा लेते हैं और स्वर्ग सी भूमि को स्वयं ही प्रदूषित करके नरक बना लेते हैं।
हम सभी अपने चारों तरफ देखें तो ईश्वर की बनाई इस अद्भुत दुनिया के निराले प्राकृतिक नजारों को देखकर हमारा तन-मन प्रफुल्लित हो जाता है। भगवान ने हमको प्रकृति की गोद में हर तरफ कल-कल करती नदियां, प्राकृतिक संगीतमय झरने, मनमोहक प्राकृतिक सौन्दर्य युक्त पहाड़, तरह-तरह के सुंदर जीव-जंतु, सुंदर फूल, कंदमूल-फल, तरह-तरह के अनाज, बेल-लताएं, हरे-भरे छोटे और विशालकाय वृक्ष, प्यारे-प्यारे चहचहाते पक्षी आदि से परिपूर्ण साक्षात स्वर्ग रूपी सुंदर संसार दिया है, यह वो संसार है जो आदिकाल से और आज भी हम सभी इंसानों के आकर्षण का हमेशा केंद्र बिंदु रहा है।
लेकिन आज इंसान ने अपनी जिज्ञासा और नई-नई खोज की अभिलाषा में जब से प्रकृति के कार्यो में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है, तब से पर्यावरण की हालात दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होकर बेहद प्रदूषित होती जा रही है। आज देश में जहरीली होती आबोहवा की वजह से साँस, एलर्जी सम्बन्धी व अन्य प्रकार की तरह-तरह की गम्भीर बीमारियों का खतरा हम सभी देशवासियों पर बहुत तेजी से मंडरा रहा है। जहरीली हवा के चलते लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता घटने से व गम्भीर बीमारियों के बढ़ने से देश में मृत्युदर में काफी तेजी से इजाफा हुआ है। प्रदूषण की वजह से दम तोड़ते लोगों के आकड़ों में साल दर साल बहुत ही तेजी से वृद्धि हो रही है।
अमेरिका के दो संस्थान हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट एवं इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन ने हाल ही में विश्व भर में वायु की गुणवत्ता से सम्बंधित आकडों पर अपनी एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी। जिस रिपोर्ट का शीर्षक था – “स्टेट आॅफ ग्लोबल एयर-2019” इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में वायु प्रदूषण से होने वाली 5 मिलियन मौतों में से 50% मौत केवल भारत और चीन में ही होती है जो कि बहुत ही भयावह स्थिति को दशार्ने वाले आकड़े हैं।
इस विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय तक घर से बाहर रहने या घर में वायु प्रदूषण के चलते वर्ष 2017 में स्ट्रोक, डायबिटीज, हार्ट अटैक, फेफड़े के कैंसर या फेफड़े आदि की गम्भीर बीमारियों से विश्व में लगभग 50 लाख लोगों की मौत हुई है। इस रिपोर्ट के अनुसार आज भारत में वायु प्रदूषण अब स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक जोखिमों के तीसरे पायदान पर पहुँच गया है, जो कि अब देश में मौत का तीसरा सबसे बड़ा गम्भीर कारक बन गया है। जो देश में धूम्रपान से होने वाली मौतों के ठीक ऊपर है। 2017 में भारत की लगभग 60% आबादी घरेलू प्रदूषण के संपर्क में थी।
इस रिपोर्ट में जब भारत की वायु गुणवत्ता का अध्ययन किया गया है, तो पाया कि विश्व में सबसे अधिक भारत में वायु प्रदूषण की वजह से लोगों की मृत्यु हो रही हैं जो कि भविष्य में देशहित के लिए ठीक नहीं है। यहाँ उल्लेखनीय है कि नाइट्रोजन, सल्फर आॅक्साइड और कार्बन खासकर पीएम 2.5 जैसे वायु प्रदूषक तत्वों को असमय मौत का एक बहुत बड़ा कारक माना जाता है। ठीक उसी प्रकार “केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड” ने अपनी रिपोर्ट में जिन शहरों को सबसे अधिक प्रदूषित शहर माना है।
लेकिन फिर भी सरकार ना जानें क्यों उन शहरों के वायु प्रदूषण के संदर्भ में आयी रिपोर्टों को खास तवज्जो नहीं देती है, जिसके चलते देश में ना तो सही ढंग से प्रदूषण नियंत्रण हो पा रहा है ना ही सही आंकड़े सभी देशवासियों के सामने आ रहे हैं। लेकिन विदेशी संस्थाओं की रिपोर्ट में दी गयी इस बात से तो सहमत हुआ जा सकता है कि वायु प्रदूषण की वजह से देश में होने वाली मौतों की जो संख्या व इस रिपोर्ट में दी गई है उसकी संख्या कम या ज्यादा तो हो सकती हैं, लेकिन यह भी कड़वा सत्य है कि वायु प्रदूषण के चलते देश के शहर दिन-प्रतिदिन जहरीले गैस के चैम्बर बनते जा रहे है और उससे अब लोग असमय काल का ग्रास बन रहे हैं। इस सच्चाई से अब ना तो सरकार और ना ही आम-आदमी मुँह मोड़ सकता है।
क्योंकि अब यह सबको समझ आ गया है कि वायु प्रदूषण एक बहुत ही गम्भीर पर्यावरणीय समस्या है जिसका जल्द से जल्द कारगर समाधान करने के लिए सरकार को आम-जनमानस के सहयोग से प्रभावी कदम उठाने होंगे। देश में आज भी हालत यह है कि वायु प्रदूषण कम करने की कोशिशें केवल देश के चंद बड़े शहरों दिल्ली, मुम्बई आदि जैसे बड़े-बड़े महानगरों तक केन्द्रित रहीं हैं। इस गम्भीर समस्या के मसले पर सरकारों ने छोटे शहरों व गांवों के निवासियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक स्थिति है। यह हालात तब है जब वर्ष 2016 में “विश्व स्वास्थ्य संगठन” ने दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की थी, उनमें भारत के 10 शहर शामिल थे। फिर भी अभी तक सरकार ने छोटे शहरों व गांवों के प्रदूषण रोकने के लिए कोई ठोस कारगर पहल नहीं की है।
सबसे अचरज की बात यह है कि ना तो हम व ना ही स्थानीय प्रशासन अपने शहरों में वायु प्रदूषण का अन्दाजा ठीक से नहीं लगा पा रहे हैं, तो इसकी वजह से आम जनता की सेहत पर पड़ने वाले कुप्रभावों का अन्दाज हम ठीक प्रकार से कैसे लगा पाएँगे? इसके लिये जरूरी बुनियादी ढाँचे के अभाव की स्थिति में हम वैश्विक स्तर पर किये जा रहे इन विदेशी आकड़ों पर विश्वास करके वायु प्रदूषण से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठा सकते हैं, जब तक कि हमारा ढाँचा प्रभावी रूप से विकसित नहीं हो जाता है तब तक हमारे पास विदेशी आकड़ों व रिपोर्ट पर विश्वास करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचता है।
हम सभी को समझना होगा कि आजकल हमारे देश के सभी शहरों में तरह-तरह का इतना प्रदूषण और शोर है कि पक्षी तक भी वहां से पलायन करने लगे हैं। अब पक्षियों के नाम पर शहरों में सिर्फ कुछ गिने चुने चंद प्रजाति के पक्षी ही देखने को मिलते हैं। आज शहर व गाँव में तरह-तरह के प्रदूषण की वजह से लोग आये दिन गम्भीर बीमारियाँ से ग्रसित हो रहे है। प्रदूषण के चलते शहर का तो हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के रोग से ग्रसित हो गया है। देश की राजधानी दिल्ली व उसके आसपास के इलाकों में तो अब इतना वायु प्रदूषण बढ़ गया की लोगों का साँस लेना मुश्किल हो गया। इसलिए अब समय आ गया है
कि हम सभी देशवासी सरकार के साथ मिलकर फाईलों से बाहर आकर धरातल पर पर्यावरण के सरंक्षण व सुरक्षा के लिए हर संभव ठोस कारगर उपाय करें। ना कि कभी दीपावली की आतिशबाजी , कभी पराली जलाने, कभी वाहनों के धुएं के चलते प्रदूषण , कभी औधोगिक ईकाईयों से या कभी अत्यधिक निर्माण कार्यो का चलते गम्भीर प्रदूषण हो रहा है पर बात टाल कर अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री करें।
दीपक त्यागी
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