इन्तजार तस्वीरों ने संजोयी है , बहुत सी आवाजे अपने अंदर,
लेकिन हकीकत ने आज मौन का कफन ओढ़ रखा है।
आंगन जो लीपा जाता था, प्यार की मिट्टी से कभी,
झूठे, दिखावटी संगमरमर के पत्थरों से ढ़क रखा है।
शाम की चाय की भीनी खुशबू आज भी वैसी ही है,
लेकिन अब सगे भाइयों ने घर को बाट रखा है।
ना जाने क्या पाने की चाहत है आजकल इंसानों को,
सुबह से शाम तक सभी ने भाग-दौड़ मचा रखा है।
बूढ़ी हो गई आँखे आज भी रहती है बच्चो के इंतजार में,
पर बच्चो ने घर के अंदर अपना अलग घर बना रखा है।।
-पुनम राठौड़, जयपुर
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