शाह मस्ताना जी महाराज के पावन अवतार माह के उपलक्ष में कविता
कविता
सच्ची सरकार आ गई
भाईचारा प्रेम जब मिटने लगा
हर रिश्ते में दरार आ गई,
तरस खाकर करने उद्धार रूहों का
सच्ची सरकार आ गई।
कार्तिक की पूर्णमासी,
हर रूह के मस्तक पर उज्जास था।
सुखी कलियां जी उठी,
रूहानियत के बादशाह का आगमन बड़ा खास था
उनके दर से कोई खाली जाए
न किसी की भूख बर्दाश्त थी।
हर मस्तक पर रौनक और मुस्कान हो
केवल उनकी यही अरदास थी।
साधुओं को मिठाई खिलाकर
उनकी भूख मिटाते थे,
मेहनत हक-हलाल का खाना खुद अपनाते,
और सिखाते थे।
जी उठा आलम सारा
बंजर भूमि में बाहर छा गई
सच्ची सरकार आ गई।
सादगी के पुंज, प्रेम प्रतीक
और महानों के महान थे
कण – कण, ब्रह्मण्ड उनके वश में
और दुनिया के अरमान थे
प्यासे की प्यास मिटी
और भूखों का सहारा हुआ
नंगे को कपड़ा, तंग को धन
भव में डूबते को किनारा हुआ।
हर बुराई मिटने लगी,
अंधेरे में उजाला हुआ,
रूहानियत की महक जो छा गई ।
सच्ची सरकार आ गई ।।
जन्म मरण के दुख फिर मिटाने लगे
देकर नाम का वरदान,
शराब के गंदे नशों से
मुक्त कराने लगे।
काल हुआ चिड़चिड़ा क्योंकि,
रूहों को छुड़ाने की मर्ज उसे दुखा गई,
सच्ची सरकार आ गई ।
भाईचारा प्रेम की लहर चली,
अच्छाइयों का पौधा खिल उठा ।
काल बड़ा छटपटाया,
साम्राज्य उसका हिल उठा।
जब सचखंड ले जाने को उनके
मसीहा की पतवार आ गई ।
सच्ची सरकार आ गई ।।
तरस खाकर करने उधार रूहों का
सच्ची सरकार आ गई ।।
लेखक – कुलदीप स्वतंत्र