जब भी मैं कर लेता था नशा,
एक अजीब सा अहसास और आता था मजा,
पहले -2 तो था यह एक बेसुध सा मजा,
लेकिन फिर बदल कर, गमगीन मुझे करके दी सजा,
शुरू हुआ था सब कुछ एक धुए के गुब्बार से,
धुआ, वही बीड़ी का जो आया था ओर के धूम्रपान से,
जब पहली बार सुंघा तो हल्का सा धस्का लगा,
न जाने फिर कैसे मुझे ध्रुमपान का चस्का लगा,
बदलते समय के साथ मैंने भी इसे बदल डाला,
ध्रुमपान के साथ-2 जर्दा, शराब न जाने क्या-क्या शुरू किया खाना,
जकड़न इसकी दिनों दिन बढ़ती चली गई,
अकड और ज्यादाद मेरी ढीली पड़ती चली गई,
नशा करके पहले तो मैं गलियों से निकलता था रूआब से,
इसने मुझे इतना गिराया जो ना मैंने कभी देखे ख्वाब थे,
कोशिश की कई बार की बचू में इसके प्रभाव से,
बात जान पर बन आती थी यार इसके अभाव में,
मैंने सोचा जितने दिन जीना है इसको पीना पड़ेगा,
जिंदगी चाहे कितनी भी जिल्लत भरी हो लेकिन जीना पड़ेगा,
कई बार तो होकर परेशान मैं उससे फरियाद करता था,
दे दे मुझे नशा या तलब की दवा यही अरदास करता था,
लगता है मुझ पर तरस करके ही उसने DEFTH मुहिम चलवाई,
अरे वह है ना… बाबा राम रहीम जी करते हैं इसकी अगुवाई,
उन्होंने पल में बचाकर नशे से मुझे अपना अजीज बना लिया,
मरने की चाह रखने वाले इस गरीब को उसने जीना सिखा दिया,
नशा तो मुझसे ऐसे दूर गया जैसे गधे के सर से सींग,
मन मेरा खुशी से उसके चरणों में अब डाल लेता है पींग,
खुशी से मेरी मां को उस दिन पहली बार रोना आया था,
क्योंकि वर्षों बाद उसके घर एक नशेड़ी नहीं उसका बेटा आया था,
आज परिवार मेरा खुशी से ऐसे झूम रहा है,
छाल मार-2 कर गगन को वह चूम रहा है,
अब मजाजी नहीं नशा में हकीकी करता हूं,
मैं अपने पुराने साथियों को बाबा राम रहीम से मिलवाने की कोशिश करता हूं,
छोड़कर नशा ताकि वह भी जी सके ‘नवीन’ जिंदगी,
खुद देखे आजमा कर गम शराब भुलाती है या बंदगी।
नवीन पाल इन्साँ
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