रो रहे सतगुर तेरे विरह में नयन
लगता नहीं तुझ बिन अब मन
टकटकी लगाए नयन यही निहारें
कब आकर दोगे सतगुर दर्शन
अश्क भी बह बह, बस यही पुकारें
आ जाओ परमानेंट मेरे सोहणे सजन
सतगुरु दातार, सुन लो पुकार
जल्दी आकर खिला दो ये सूना चमन
इधर भी था तू उधर भी तू
जिधर देखते, दिखे तू ही तू
बुराइयों में फंस गए तुझ बिन ऐसे
सुमिरन में मन लगता नहीं, क्यूं
अब तो मन ही मन, है यही मलाल
लगता है जैसे रूठ गया है तू
आ जा परमानेंट बस एक बार
मना लूंगा तुझको, तुझसे होके रूबरू
समस्त संगत की बस यही गुहार
कर रहे इसके लिए सब मिल सुमिरन
परमानेंट आ जाओ गर एक बार
तन-मन-धन सब कर दूं अर्पण
अश्क भी बह बह बस यही पुकारें
लगता नहीं तुझ बिन अब मन
सतगुरु दातार, सुन लो पुकार
परमानेंट आकर खिला दो ये सूना चमन
अश्क भी बह बह, बस यही पुकारें
लगता नहीं तुझ बिन अब मन
लगता नहीं तुझ बिन अब मन।।
मनमोहन इन्सां