– कविता –
तुम कब आओगे
तुम कब आओगे ,
तुम्हारी राह में ,
पलके बिछाए बैठे हैं ।
दिल की हर बात ,
दिल में छुपाए बैठे हैं ।
अपनी मीठी – मीठी बातों से ,
तुम कब हंस आओगे ।
बताओ ना जरा ,
तुम कब आओगे ।।
तुम्हारे पास होने से ,
हर दर्द की दवा ,
मिल जाती है ।
मुरझाई हर कली ,
खिल जाती है ।
सुकून का नशा हमें ,
कब पिलाओगे ।
बताओ ना जरा ,
तुम कब आओगे ।।
हम नहीं और किसी के ,
बस तुम ही हमारे हो ,
अमीर – गरीब सबके ,
तुम ही तो सहारा हो ।
बदली – बदली हुई दुनिया ,
तुम्हें अब खुदा मानती है ।
तुम ही पार लगाओगे ,
अब ये भी जानती है ।
तड़पते हुओं के चेहरों पर ,
मुस्कान कब लाओगे ।
बताओ ना जरा ,
तुम कब आओगे ।।
तुम्हारी तन्हाई में ,
यादों का एहसास है ।
जब से तुम्हारा दर्श किया ,
हर दिन अब खास है ।
अंधेरों के आशियाने में ,
रहमत का दिया ,
कब जलाओगे ।
बताओ ना जरा ,
तुम कब आओगे ।।
तुम्हारी यादों के गीत ,
परिंदे हर रोज गाते हैं।
अपना हर दर्द रो कर ,
सबको बतियाते हैं ।
अपने कर – कमलों से ,
दर्द उनके कब सहलाओगे ।
बताओ ना जरा ,
तुम कब आओगे ।।
यादों की खिड़कियों से
हर रोज तुम
पास आते हो
मुस्कराकर थोड़ा सा
फिर दूर चले जाते हो
हरदम रहो पास
पल यह कब लाओगे
बताओ ना जरा
तुम कब आओगे
@ कुलदीप स्वतंत्र
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