इच्छा प्रति आपके, प्रतीक्षा में आहें!
पल प्रतिपल हरपल तुम्हें, अपलक निहारें राहें!
अपलक निहारें राहें, चाहें नयन चकोरे!
अपने रंग रंगरेज रंगो, हम रह जाएं न कोरे!
जो चाहो करवाते रहना, देना ऐसी शिक्षा!
स्वांती बूंद दर्श की देकर खत्म करी प्रतीक्षा।।
संजय बघियाड़