पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट द्वारा पनामा पेपर लीक मामले में दोषी ठहराये जाने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला शरीफ के लिए अप्रत्याशित नहीं था। पाकिस्तान के भीतर और बाहर हर जगह ऐसे ही फैसले का अनुमान व्यक्त किया जा रहा था। सब जानते थे कि पनामा पेपर लीक मामले में शरीफ जिस तरह से घिर चुके हैं, वहां से उनका निकलना अपने आप में किसी अजूबे या चमत्कार से कम नहीं होगा।
दरअसल नवाज शरीफ की सत्ता से विदाई की पटकथा उसी समय लिख दी गई थी जब उनके विरोधियों और विपक्षी दलों की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच करने के लिए छह सदस्यीय संयुक्त जांच दल (जेआईटी) का गठन किया था। जिस दिन जेआईटी का गठन किया गया था उसकी निष्पक्षता पर उसी दिन से ही अंगुलियाँ उठने लगी थी। जेआईटी में जिस तरह से नवाज शरीफ के विरोधियों को तरजीह दी गई थी उसे देखते हुए लग रहा था कि रिर्पोट पूरी तरह से शरीफ के खिलाफ आएंगी। हुआ भी यही।
इन छह सदस्यों में दो सदस्य रिटायर्ड फौजी थे जिनकों आर्थिक मामलों की जांच से संबंधित कोई अनुभव नहीं था। जांच दल के एक सदस्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान से निकटता थी। एक अन्य सदस्य की नवाज शरीफ से पुरानी रंजिश थी। उम्मीद के मुताबिक जेआईटी ने शरीफ और उनके परिवार के खिलाफ बहुत सख्त रिर्पोट पेश की। इसमें नवाज के खिलाफ 15 मामलों में अपराधिक जांच की सिफारिश की गई है, तथा उनकी बेटी और उत्तराधिकारी मरियम शरीफ पर एक जाली दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट मे पेश करने का आरोप भी लगाया गया। इन 15 मामलों में से तीन 1994 से 2011 के बीच के पीपीपी के कार्यकाल के हैं और बाकी के बारह मामले मुशर्रफ के समय के है, जब उन्होंने शरीफ का तख्तापलट कर दिया था।
यह सारा मामला उस समय सुर्खियों में आया जब साल 2015 में अमेरिका स्थित एक गैर सरकारी संगठन खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय महासंघ ने आर्थिक मामलों से जुड़े एक करोड़ से अधिक दस्तावेजों को सार्वजनिक कर तहलका मचा दिया था। लीक दस्तावेजों में दुनिया के अलग-अलग देशों के 143 राजनेताओं के बारे में खुलासा किया गया था। इन राजनेताओं पर अपने व अपने परिजनों के नाम से विदेशों में जाली कंपनिया खोलने और उसमें संपत्ति रखने का आरोप लगाया गया था।
इनमें से 12 तो अपने-अपने देशों के राष्ट्राध्यक्ष है। इन दस्तावेजों में मिस्र के पूर्व तानाशाह होस्री मुबारक, लीबिया के पूर्व शासक मुअम्मर गदाफी और सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के परिवार और उनके सहयोगियों से जुड़ी कंपनियोंं की गोपनीय जानकारी शामिल है। इस प्रकरण में शरीफ के अलावा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के परिवार, आइसलैंड के प्रधानमंत्री व ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के पिता का नाम भी आया है। इसके अलावा रूस के प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तान की दिवगंत प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो सहित भारत के 500 लोगों के नाम भी शामिल हैं। यह मामला इतना अधिक चर्चित हुआ कि आईसलैंड के प्रधानमंत्री को तो अपने पद से इस्तीफा तक देना पड़ गया था।
पनामा पेपर्स में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, उनके दोनों बेटे हुसैन शरीफ और हसन शरीफ तथा बेटी मरियम शरीफ पर विदेशों में पंजीकृत फर्जी कंपनियों में अपनी संपत्ति छिपाने का आरोप था। खुलासे में जो तथ्य सामने आये हैं, उनमें कहा गया है कि नवाज परिवार ने ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में चार कंपनिया शुरू की थीं। इससे उन्होंने लंदन में छह बड़ी प्रॉपर्टी खरीदी। इस प्रॉपर्टी को खरीदने में शरीफ ने अघोषित आय का इस्तेमाल किया है। साल 1990 में नवाज के परिवार ने लंदन में प्रॉपर्टी खरीदी थी उस दौरान नवाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री थे और उनका दूसरा कार्यकाल था।
इस मामले में शरीफ परिवार का नाम आने के बाद से ही इमरान खान और उनकी पार्टी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शरीफ को घेरना शुरू कर दिया था। कुछ पार्टियों ने शरीफ पर मुकदमा चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी। इस मामले में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने 20 अप्रैल 2017 में जेआईटी का गठन किया था जिसने 7 हफ्ते की लंबी जांच के बाद 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के सामने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी थी। इन 7 हफ्तों में जेआईटी ने नवाज शरीफ समेत उनके परिवार के 8 सदस्यों से पूछताछ की थी। जेआईटी ने अपनी रिपोर्ट में शरीफ और उनके परिजनों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज कर मुकदमा चलाने की सिफारिश की।
सम्पूर्ण मामले की त्वरित गति से सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने जो फैसला सुनाया है उसमें कहा गया है कि शरीफ के खिलाफ इस मामले में आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए और उनको प्रधानमंत्री पद के अयोग्य ठहरा दिया है। इसे बदकिस्मती ही कहा जाना चाहिए कि नवाज शरीफ 1990 के बाद से अब तक तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन चुके हैं। परंतु बतौर प्रधानमंत्री वे कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके हैं। पहली दफा वे नवंबर 1990 में प्रधानमंत्री बने थे। तत्कालीन राष्ट्रपति गुलाम इसाक खान से मतभेदों के चलते 1993 में संसद को भंग कर दिया गया। दूसरी दफा फरवरी 1997 में शरीफ ने पाक पीएम का पद संभाला लेकिन अक्टूबर 1999 में सेना ने तख्तापलट कर निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया। अब तीसरी दफा 2013 में प्रधानमंत्री बने लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही न्यायपालिका ने उन्हें बेदखल कर दिया।
कुल मिलाकर पनामा पेपर लीक मामले में शरीफ का जाना तय था। लेकिन शरीफ का पाकिस्तान की सत्ता से रूख्सत होना भारतीय नजरिये से अच्छा नहीं हैं। आने वाले दिनों में इसका असर भारत में देखने को मिलेगा, खासकर सुरक्षा के मामले में। उनके जाने से जहां एक ओर पाकिस्तानी सेना और कटरपंथियों की हैसियत बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर नागरिक प्रशासन द्वारा भारत से व्यापारिक संबंध बढ़ाने तथा कटरपंथी इस्लामी संगठनों पर रोक लगाये जाने के प्रयासों को भी झटका लगेगा। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में जब भी कोई राजनीतिक संकट आया है वह भारत और कश्मीर पर फोकस बढ़ा देता है। कोई संदेह नहीं की आने वाले दिनों में भारत-पाक रिश्तों में और तल्खी देखने को मिलेगी।
-एनके सोमानी
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।