सच्चा सौदा सुख दा राह, सब बंधनां तों पा छुटकारा मिलदा सुख दा साह…
संतों के फरमाए हुए वचन जीवन के हर मोड़ पर काम आते हैं। संतों के प्यारे और मीठे संदेश रूपी वचनों को इस श्रृंखला में आप पढ़ रहे हैं।
सामने स्टेशन बनवाएंगे
अक्तूबर 1957, बुधवाली (राजस्थान) बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज जीवोद्वार यात्रा के दौरान बुधरवाली में सत्संग फरमाने पहुंचे। रात के समय सत्संग के दौरान बूंदी का प्रसाद बंटवाया गया। करीब तीन सौ लोगों ने सत्संग सुना। सत्संग के उपरांत शहनशाह जी ने वचन फरमाया, ‘‘जो नाम लेने वाले जीव हैं उनको अलग कर लो।’’ जो संगत थी वह सारी की सारी चली गई। कोई भी जीव नाम के लिए नहीं रुका। रात के ग्यारह बजे थे। शहनशाह जी ने अपने सेवादारों में से भक्त माला राम तथा बीरू राम को अपने पास बुलाया और आदेश दिया कि एक जीव को नाम दिलवाओ तो हजार गऊओं को कत्ल होने से बचाने का फल मिलेगा।
जब सुबह हुई तो बेपरवाह मस्ताना जी महाराज बाहर घूमने के लिए भक्त माला राम को अपने साथ ले गए तथा रेलवे लाइन के साथ-साथ पूर्वी दिशा की ओर दो मुरब्बे तक आए। जब लौटे और आश्रम के पास गए तो शहनशाह जी रेलवे लाइन पर बैठ गए और वचन फरमाए, ‘‘बेटा, यहां से स्टेशन दूर है। अपनी संगत को तीन मील पैदल चलकर आना पड़ता है।’’ बेपरवाह जी ने आश्रम की जगह की ओर इशारा करते हुए वचन फरमाए, ‘‘बेटा, वहां तो बनाएंगे गुफा और गुफा के सामने बनाएंगे स्टेशन।’’ बेपरवाह जी ने आगे फरमाया, ‘‘बेटा, जब हम तीसरी बॉडी में आएंगे तो दूर-दूर जाकर नाम जपाएंगे। जैसे मास्टर पढ़ाता है। बच्चों को मास्टर का डर होता है। ऐसे काम चलाएंगे।’’ आज बेपरवाह जी के वचन ज्यों के त्यों पूरे हुए हैं।
सिरे वाली बात…
15 सितंबर 1969: पूज्य परम पिता जी गांव त्योणा पुजारियां जिला बठिंडा में सत्संग फरमाने के उपरांत भाई चंद सिंह तथा नंद सिंह के घर गांव तंगराली में पधारे। इस घर में परम पिता जी की धर्मपत्नी पूज्य माता गुरदेव कौर जी के ननिहाल है। वहां पर परमपिता जी परिवार के सभी सदस्यों से मिले और सभी की कुशलता पूछी। इस घर के पास ही बरगद के पेड़ लगे हुए थे। परम पिता जी ने उन पेड़ों को देखते हुए वचन फरमाया, ‘‘अपने आश्रम में भी बरगद के पौधे लगाने हैं।’’
इस पर परिवार के सदस्यों ने कहा कि हम बरगद के पौधे दरबार में ले आएंगे। जब परमपिता जी वहां से चलने लगे तो चंद सिंह (परम पिता जी के रिश्तेदार) परम पिता जी को सम्मान के तौर पर कंबल देने लगे तो परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘चंद सिंह, अब हम संत हैं। इसलिए हम किसी से कुछ नहीं लेते।’’ भाई चंद सिंह ने विनती की कि पिता जी, हम आपको संत के तौर पर नहीं दे रहे बल्कि हम तो रिश्तेदारी के रूप में दे रहे हैं। परम पिता जी ने सेवादार से कहा, ‘‘ले लो भाई, अब तो इन्होंने सिरे वाली बात कह दी है।’’
इस जलते-बलते भट्ठ कलियुग में संजीवनी है मालिक का नाम
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मालिक का नाम इस जलते-बलते भट्ठ, इस कलियुग में आत्मा के लिए मृतसंजीवनी है। मर रही इन्सानियत, तड़प रही इन्सानियत को अगर कोई जिंदा रख सकता है तो वो है ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संतों के वचनों को भी तरोड़-मरोड़ कर अपने हिसाब से लोग इस्तेमाल करते हैं जोकि बिल्कुल गलत है। ऐसा नहीं करना चाहिए। ये शैतान दिमाग का काम होता है। संतों के वचनों को जो कोई तरोड़-मरोड़ कर पेश करता है।
वो दु:खी रहता है, गमगीन रहता है, रोगों का घर बन जाता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संत, पीर-फकीर के वचन नहीं होते वो तो अल्लाह, वाहेगुरु, राम की चर्चा करते हैं, वचन तो परम पिता परमात्मा के होते हैं। इसलिए पीर, फकीर की बात सुनो, अमल करो, उसके अनुसार चलो तो जिंदगी के आदर्श की प्राप्ति का बीमा हो जाता है। दुनिया में बीमा पॉलिसी बहुत हैं लेकिन राम नाम, अल्लाह, वाहेगुरु, मालिक की भक्ति इबादत की बीमा पॉलिसी ऐसी है, जिसको अगर आदमी अपने जीवन में अपना ले, तो यहां व अगले जहान में भी उस आत्मा का बीमा पक्का हो जाता है, कि वो गम, दु:ख, दर्द, चिंताओं से बचेगी और मालिक की गोद में बैठकर निजधाम जरूर जाएगी।