महाराष्ट्र के धुले जिले में भीड़ द्वारा पांच लोगों की हत्या की गयी/Social Media
पूनम आई कौशिश: सोशल मीडिया (Social Media ) जान लेता है और कैसे? भीड़ द्वारा हत्याएं पुन: राजनीतिक और सामाजिक सुर्खियों में आ गयी हैं । भीड़ द्वारा महाराष्ट्र, कर्नाटक, त्रिपुरा, आंध्र, तेलंगाना, गुजरात और पश्चिम बंगाल सहित असम से लेकर तमिलनाडू तक नौ राज्यों में 17 मामलों में 27 निर्दोष लोगों की हत्या की गयी। इन मामलों में भीड़ पुलिस से भी तेजी से कार्यवाही करती है और अधिकारी प्रौद्योगिकी के माध्यम से ऐसी हत्याओं को रोकने के लिए तौर-तरीकों को नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के धुले जिले में भीड़ द्वारा पांच लोगों की हत्या की गयी और इसका कारण व्हाट्स ऐप पर बच्चों की खरीद-फरोख्त की झूठी अफवाह थी। जिसके चलते भीड़ ने इन लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। कुछ राज्यों ने ऐसी अफवाहों से आगह करने के लिए कुछ लोगों की सेवाएं ली हैं जो लाउडस्पीकर लेकर गांव-गांव जा रहे हैं और झूठी खबरों के खतरों के बारे में लोगों को बता रहे हैं। ये राज्य ऐसी हिंसा पर नियंत्रण लगाना चाहते हैं। इन घटनाओं से दुखी उच्चतम न्यायालय ने भीड़ द्वारा ऐसी हत्याओं को सभ्य समाज में अस्वीकार्य अपराध बताया है और कहा है कि कोई भी कानून को अपने हाथ में नहंी ले सकता है और ऐसी घटनाओं पर रोक की जिम्मेदारी राज्यों पर डाली है।
राज्यों को ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाने चाहिए/ Social Media
न्यायालय ने कहा है कि राज्यों को ऐसी घटनाओं को रोकने ओर पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए दिशा-निर्देश बनाने चाहिए। न्यायालय गोरक्षकों पर नियंत्रण लगाने के लिए दिशा-निर्देश बनाने के संबंध में निर्देश देने की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। यह बताता है कि स्थानीय गुप्तचर सेवा कितनी अप्रभावी है। वह पुलिस को तनाव या भावी हमले के बारे में आगह नहंी कर पाती। यह सेवा ऐसे समूहों के पास हथियारों और उनमें शामिल व्यक्तियों के बारे में सूचना जुटाने में भी सक्षम नहीं है। ऐसी हत्याएं हमारी व्यवस्था की कमजोरी का संकेत है और यह बताता है कि देश में कानून का पालन नहीं हो रहा है। देश में घृणा और आक्रोश का एक नया पंथ स्थापित हो गया है। गुंडागर्दी द्वारा मौत और जघन्य अपराध किए जा रहे हैं और हम ऐसे तत्वों के बंदी बन गए हैं। यदि समय पर हस्तक्षेप किया जाता तो भीड़ द्वारा ऐसी हत्याओं को रोका जा सकता था। भीड़ द्वारा ऐसा उपद्रव कोई नई बात नहीं है और कुछ राज्यों में सत्तारूढ दल इसका उपयोग राजनीतिक साधन के रूप में कर रहे हैं और कई बार इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है और कई बार अपनी राजनीतिक सत्ता को बचाए तथा अपने समर्थकों को बचाने के लिए ऐसी घटनाओं को नजदरंदाज किया जाता है।
उत्तर प्रदेश के दादरी में एक मुसलमान की भीड़ द्वारा हत्या/ Social Media
पिछले तीन वर्षों में ऐसी अनेक घटनाएं हुई। उत्तर प्रदेश के दादरी में एक मुसलमान की इस अफवाह के बाद भीड़ द्वारा हत्या कर दी गयी कि उसके फ्रिज में गोमांस है। उसके बाद गुजरात के उना में गोरक्षकों द्वारा चार दलितों की हत्या कर दी गयी। अलवर में गो की तस्करी के संदेह में पहलू खान और फरीदाबाद में जुनैद की हत्या की गयी। देश में गोहत्या और गोमांस भक्षण के मुद््दे पर ऐसी अनेक घटनाएं हुई। फिर प्रश्न उठता है कि क्या हमारे देश में अभी भी कानून का शासन है। हम भीड़ द्वारा हिंसा के बारे में इतने उदासीन क्यों हैं? ये उपद्रवी समाज और प्राधिकारियों से आगे कैसे बढ जाते हैं? हमारा समाज नैतिक दृष्टि से इतना भ्रष्ट कैसे बन गया कि ऐसी घटनाएं होने लग गयी। क्या हम ऐसी घटनाओं को पसंद करते हैं? कल तक गोरक्षकों द्वारा गोमांस को लेकर लोगों की हत्या की जा रही थी आज अफवाहों को लेकर ऐसी घटनाएं हो रही हैं और अब लगता है कि हमें हर समय अपने पहचान पत्र साथ में रखने चाहिए।
30 करोड़ से अधिक लोगों के पास व्हाट्स ऐप सुविधा/ Social Media
हमारे देश में 100 करोड से अधिक सक्रिय मोबाइल फोन कनेक्श्न हैं और 30 करोड़ से अधिक लोगों के पास व्हाट्स ऐप सुविधा है। इसलिए सरकार को कोई उपाय नहंी सूझता कि वह झूठी खबरों के आधार पर किस तरह हिंसा पर अंकुश लगाए। ऐसी हिंसा पर अंकुश लगाना स्थानीय प्राधिकारियों पर छोड़ दिया जाता है। चेतावनी जारी की जाती हैं और गांव गांव जाकर जन जागरण का प्रयास किया जाता है। किंतु यह पर्याप्त नहंी है। जबकि सरकार दावा करती है कि वह भरसक प्रयास कर रही है। साथ ही सरकार को बलि के बकरे के रूप में व्हाट्स ऐप मिल गया है और वह व्हाट्स ऐप से कहती है कि वह ऐसे संदेशों पर रोक लगाए। इससे पता चलता है कि सरकार का दृष्टिकोण कितना अनुचित है और उसे आधुनिक संदेश भेजने वाले साधनों की समझ नहीं है। साथ ही सरकार ऐसी जघन्य हत्याओं के मामले में व्यापक मुद्दों का निराकरण करने में भी विफल ही है। भीड़ द्वारा हत्याएं कानून और व्यवस्था की समस्याएं हैं। किंतु उसके तीन मुख्य कारण हैं। पहला, जाति और पंथ पहचान। दूसरा, न्यायालय द्वारा भीड़ द्वारा हिंसा करने वालों को दंडित न किया जाना जहां पर राज्य के प्राधिकारी उपस्थित भी होते हैं, वे भीड़ को चुनौती देने में सक्षम नहीं होते हैं और तीसरा, कानून को लागू करने वाले हिंसा में भागीदार बन जाते हैं। कानून का शासन कमजोर हो गया है और इसका उदाहरण गोमांस पर प्रतिबंध लगाने के बारे में भीड़ द्वारा हिंसा है।
2019 के चुनावों के निकट आते हुए व्हाट्स ऐप ने अपना विस्तार कर दिया/ Social Media
विडंबना देखिए। 2019 के चुनावों के निकट आते हुए व्हाट्स ऐप ने अपना विस्तार कर दिया है। राजनीतिक दल हजारों व्हाट्स ऐप वारियर को भर्ती कर रहे हैं जो कई मामलों में आपत्तिजनक संदेश फैलाते हैं। किंतु साथ ही सरकार और राजनीतकि दलों को सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफार्मों द्वारा दी जा रही सूचनाओं की सत्यता के बारे में जानने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके अलावा पुलिस बल को ऐसे क्षेत्रों की पहचान कर प्रभावी उपाय करने चाहिए और गलत सूचनाओं के संबंध में तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए। पुलिस बल को समाज में जागरूकता पैदा करनी चाहिए, उसका विश्वास जीतना चाहिए तथा भीड़ द्वारा हिंसा पर रोक लगानी चाहिए तथा अपहरणकतार्ओं आदि जैसे मुद््दों पर लोगों के भय को दूर करना चाहिए। भीड़ द्वारा हत्या के मामले में व्हाट्स ऐप को दोषी बताना बताता है कि सरकार नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मदोरियों को न निभाने का प्रयास कर रही है। वह जनता से जुड़ने के अवसर को भी खो रही है और दुष्प्रचार की समस्या और इस पर अंकुश लगाने के उपायों को नहीं समझ पा रही है। आशा की जाती है कि सरकार प्रौद्योगिकी कंपिनयों के साथ सहयोग कर प्रौद्योगिकी के प्रयोग से इस पर अंकुश लगाने के नए उपाय ढूंढेगी। किंतु यह तभी संभव है जब सरकार इस चुनौती का सामना करने के लिए इच्छाशक्ति दिखाए।
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